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मेघ: प्राह
कथं चरेत् कथं तिष्ठेच्छयीतासीत वा कथम् । कथं भुञ्जीत भाषेत, साधको ब्रूहि मे प्रभो ॥ १ ॥ १. मेघ बोला- हे प्रभो ! मुझे बताइए, साधक कैसे चले ? कैसे ठहरे ? कैसे सोए ? कैसे बैठे ? कैसे खाए ? और कैसे बोले ?
संयतचर्या
मेघकुमार ने यहां छह प्रश्न प्रस्तुत किए हैं। इन छहों प्रश्नों में साधक जीवन के सारे पहलु समा जाते हैं । दूसरे शब्दों में कहें तो इन प्रश्नों में सारा योग समा जाता है ।
व्यक्ति जब साधक - जीवन में प्रवेश करता है तब उसका चलना, बैठना, खाना आदि विशेष लक्ष्य से सम्बन्धित हो जाते हैं । अतः उसे उन सभी प्रवृत्तियों की कुशलता प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक प्रशिक्षण लेना होता है। यहां से योग का प्रारम्भ होता है ।
गीता में भी अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैंस्थितप्रज्ञस्य का भाषा, समाधिस्थस्य केशव !
स्थितधीः किं प्रभाषेत, किमासीत व्रजेत् किम् ॥
केशव ! समाधि में स्थित स्थितप्रज्ञ की क्या परिभाषा है ? वह कैसे बोले: कैसे बैठे और कैसे चले ?
भगवान् प्राह
यतं चरेद् यतं तिष्ठेच्छयीतासीत वा यतम् । यतं भुञ्जीत भाषेत, साधकः प्रयतो भवेत् ॥ २ ॥
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