________________
१६२ : सम्बोधि
प्रस्तुत श्लोकों में स्वाद - विजय के तीन उपाय निर्दिष्ट हैं : १. आत्मरसानुभूति की ओर प्रवृत्ति ।
२. एक जबड़े से दूसरे जबड़े की ओर असंचरण । ३. स्वाद के लिए खाद्य पदार्थों के मिश्रण का वर्जन ।
अप्रमाणं न भुञ्जीत न भुञ्जीताप्यकारणम् । श्लाघां कुर्वन्न भुञ्जीत, निन्दन्नपि न चाहरेत् ॥ १५॥
१५. मात्रा से अधिक न खाए, निष्कारण न खाए, सरस भोजना की सराहना और नीरस भोजन की निन्दा करता हुआ न खाए ।
इस श्लोक में भोजन करने का विवेक दिया गया है । आयुर्वेद में भी आहार के तीन प्रकार बताए गये हैं- हीनाहार, मिताहार और अति आहार । मिताहार स्वास्थ्य के अनुकूल होता है । हीनाहार और अतिआहार स्वास्थ्य के प्रतिकूल होता है । यद्यपि कुछ व्यक्तियों का विश्वास है कि हीनाहार से पाचन क्रिया ठीक होती है पर आयुर्वेद की दृष्टि से वह सही नहीं है । जैसा कि कहा गया है
तत्र हीनमात्र माहार राशि बलवर्णोपचयक्षयकरमुदावर्तक रमनायुष्यवृष्यमनोजस्यं शरीरमनोबुद्धीन्द्रियोपघातकरं सारविमनमलक्षम्यावहमशीतेश्च वातविका- रा णामापतनमाचक्षते ।
'होन आहार से बल, सौन्दर्य और पुष्टता नष्ट होती है। आयुष्य और ओज की हानि होती है | शरीर, मन, बुद्धि और इन्द्रिय का विनाश होता है । तथा. अस्सी प्रकार के वायु रोग उठ खड़े होते हैं ।'
आयुर्वेद में कहा है-
आहारमग्निः पचति दोषानाहारवर्जितः । धातून् क्षीणेषु दोषेषु, जीवितं धातुसंक्षये ॥
'अग्नि आहार को पचाती है। आहार के अभाव में वह दोषों को पचाती है। दोष क्षीण होने पर वह धातु को और धातुओं के क्षीण होने पर वह जीवन को ली जाती है ।'
आहार कैसे करें ? —स्वास्थ्यविदों ने भोजन करने की कुछ विधियां निश्चितः की हैं । बहुत उपयोगी हैं। उनमें पहली विधि यह है :
१. तमन्ना भुंजीत — आहार करते समय मन आहार में ही रहना चाहिए ।
२. नातिद्रुतमश्नीयात् - बहुत जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए । ३. नातिविलम्बितमश्नीयात् — बहुत धीरे-धीरे नहीं खाना चाहिए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org