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अध्याय १६ : ३७७
शरीर से निकलने वाले सूक्ष्म प्रकाश-किरणों का 'अंडाकार' आभा मंडल 'ओरा' है। इसे साइकिक एटमोसफियर, मेग्नेटिक एटमोसफियर भी कहते हैं। यह शरीर से दो-तीन फुट की दूरी तक रहता है। मानस परिवेश ६ से १० फुट तक रहता है। शरीर के मध्य में बहुत गहरा और आसपास हल्का होता है। जिनके आचार-विचार में स्थायित्व आ जाता है उनका 'ओरा' स्थायी बन जाता है, अन्यथा वह प्रतिक्षण भावों के साथ बदलता रहता है। ओरा के रंग तथा छाया भाश्चर्यजनक व रुचिकर होते हैं । स्थूल शरीर की भांति मेण्टल-मानसिक शरीर भी बड़ा इण्टरेस्टिग है। ओरा को समुद्र की तरह समझा जा सकता है। कभी शांत और कभी भयंकर अशान्त ।
मानव ओरा का मूल द्रव्य प्राण है। प्राण जीवन का आधार है। भावना का -सम्बन्ध प्राण से है। प्राण का रंग भाव-विचारों के बदलते ही बदल जाता है । वही बाहर प्रकट होता है। प्राण ओरा के पार्टिकल्स सबसे भिन्न भिन्न होते हैं। आदमी के चले जाने के बाद भी जो परमाणु शेष रहते हैं उनसे आदमी के संबंध में जाना जा सकता है। प्राण ओरा में बहुत अधिक प्रकाशशील स्फुलिंग होते हैं। व्यक्ति से प्रभावित और अप्रभावित होने में ओरा का हाथ है। __ लेश्या के नामों से यह अभिव्यक्त होता है कि ये नाम अन्तर् से निकलने वाली आभा के आधार पर रखे गए हैं। उनका जैसा रंग है, व्यक्ति का मानस भी वैसा ही है । प्रशस्त और अप्रशस्त में रंगों का प्राधान्य है। कृष्ण, नील और कपोतअप्रशस्त हैं, तैजस, पद्म और शुक्ल-प्रशस्त हैं । वैज्ञानिकों ने 'ओरा' के प्रायः ये ही रंग निर्धारित किए हैं। वैज्ञानिक परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि बाहर के रंग भी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। बाहरी रंगों का ध्यान-चिन्तन कर हम आन्तरिक रंगों को भी परिवर्तित कर सकते हैं।
रंग हमारे शरीर को प्रभावित करता है, हमारे मन को प्रभावित करता है। रंग चिकित्सा पद्धति आज भी चलती है। 'कलर थेरापी'-यह पद्धति चल रही है। एक पद्धति है कास्मिक थेरापी' अर्थात् दिव्य किरण चिकित्सा। इसका भी रंग के साथ सम्बन्ध है । रंग और सूर्य की किरण-दोनों के साथ इसका सम्बन्ध है। प्रकाश के साथ यह संयुक्त है। रंग हमारे शरीर और मन को विविध प्रकार से प्रभावित करता है। उस से रोग मिटते हैं, फिर वे रोग शारीरिक हो या मानसिक । मानसिक रोग चिकित्सा में भी रंग का विशिष्ट स्थान है। पागलपन को रंग के माध्यम से समाप्त कर दिया जाता है। रंग थोड़ा सा विकृत हुआ कि आदमी पागल हो जाता है। रंग की पूर्ति हुई कि आदमी स्वस्थ हो जाता है। शरीर में रंग की कमी के कारण अनेक बीमारियां उत्पन्न होती हैं । 'कलर थेरापी का यह सिद्धांत है कि बीमारी के कोई कीटाणु नहीं होते। रंग की कमी के कारण बीमारी होती है। जिस रंग की कमी हुई, उसकी पूर्ति कर दो, आदमी स्वस्थ हो
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