Book Title: Sambodhi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 500
________________ परिशिष्ट-१ : ४३७ बन जाने के कारण भीतर-ही-भीतर या विशेष आकृति में निर्मित होकर साधक को शक्ति प्रदान करती रहे, व्यर्थ न जाए। चित्त की चंचलता को भी मुद्राएं नियमित करती हैं। शान्त और अशान्त की स्थिति में हाव-भाव बदल जाते हैं। यह यत् किंचित् सबका अनुभव है। हम अपनी शान्त-स्थिति के लिए उस आकृति को अपनाएं जिससे कि चित्त सहज तथा शीघ्र स्थिर हो जाए। चित्त को बदलने के लिए आकृति का बदलना जरूरी है। आज वैज्ञानिक भी इस बात से राजी हैं कि मन की भावना का शरीर के साथ बड़ा संबन्ध है। जेम्स और लैग, अमेरिका के दो विचारकों ने इस पर गहरा काम किया है। उनका सिद्धान्त 'जेम्स-लंग' के नाम से प्रसिद्ध है। भयभीत आदमी भागता है, यह हम सबका अनुभव है । किन्तु वे कहते हैं-भाग रहा है, इसलिए डर रहा है। अगर ठहर जाय तो भय भी न रहे।' शरीर और मन जुड़े हैं। दोनों में से एक भी स्थिर और शान्त हो तो स्थिति में परिवर्तन निश्चित आ जाता है। आसनों का यथोचित उपयोग कर ध्येय को साधना ही साधक का कर्तव्य है। ___ध्यान और स्थान—यह सुविदित है कि साधना के लिए एकांत, पवित्रता और प्रकृति से सुरम्य स्थान साधना में कितने सहायक होते हैं। पर्वत, वन, उद्यान, तीर्थ-स्थल, सरिता-सागरतट, श्मशान, वृक्ष-मूल आदि स्थानों का चुनाव ध्यान के लिए किया गया है। जहां प्रकृति का प्रतिपल मौन संगीत चलता रहता है । साधक सहज ही उस मौन में एकरस हो जाए। प्रकृति के साथ अभिन्नता साध ले। महावीर, बुद्ध, लाओत्से, जीसस, मुहम्मद आदि महापुरुषों की जीवन-गाथा इसका स्पष्ट प्रमाण है। अपने साधकों को भी उन्होंने वैसे स्थानों में प्रयोग के लिए संप्रेषित किया तथा उनके ठहरने के स्थान भी प्रायः शहर के बाहर के उद्यान, बिहार, मठ आदि का उल्लेख मिलता है। साधना और लोक-संपर्क का कोई तालमेल नहीं है। साधना-सिद्धि के बाद लोक-शिक्षण या संपर्क है, न कि साधना के पूर्व । साधना का ध्येय साधना में प्रवेश कर ही प्राप्त किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। इसलिए प्राथमिक साधनों के लिए स्थान की उपेक्षा किसी भी तरह नहीं की जा सकती। हां, यह तो हो सकता है कि वह शोर-शराबे और एकांत-- दोनों को अपने ध्यान में सहायक बनाने के लिए और मन की क्षमता को संपुष्ट करने के लिए यथाशक्य दोनों का प्रयोग अपनी मनःस्थिति को अप्रकंपित रखने में कुशलता उपलब्ध करे। ___ ध्यान और समय-यह प्रश्न भी प्रायः उठता रहता है कि ध्यान कब करे ? यह प्रश्न कोई नया नहीं है। इसका उत्तर भी प्रायः एक जैसा मिलता रहा है। ध्यान या साधना के लिए प्रायः सन्ध्या के समय का निर्देश प्राप्त होता है। संध्या का समय अन्य सब कामों के लिए निषिद्ध है, केवल योग, ध्यान, ईश्वर भजन · आदि के लिए मुक्त है। सन्ध्या का अर्थ-संधिस्थल जहां दो का कुछ क्षणों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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