Book Title: Sambodhi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 484
________________ पदस्थ ध्यान पदस्थ ध्यान शब्दानुसारी होता है । उसमें वर्षा, मातृका मन्त्र तथा बीजाक्षरों का प्राधान्य रहता है । शब्द के माध्यम से अशब्द में प्रवेश का यह द्वार है । इसलिये योग के अन्तर्गत इसकी गणना की गई है । तन्त्र साहित्य में वर्ण का बहुत बड़ा महत्व है। वहां वर्ण के पर्यायवाची शब्द हैं- माता, शक्तियां, देवियां, रश्मि और कला ।' प्रत्येक वर्ण शक्तियुक्त हैं । तन्त्रों में उनकी शक्तियों का वर्णन किया है । परात्रिशिका में सकार को तीसरा ब्रह्म कहा है । 'स' वर्ण के द्वारा संसार स्फुट से प्रकाशित होता है, प्रत्यभिज्ञा शास्त्र में यह उल्लेख है । शब्द और अर्थ में अविनाभावी सम्बन्ध है | कालीदास ने शब्द और अर्थ को शिव और पार्वती के रूप में वन्दना की है । शब्दों का संहारक और उन्नायक रूप आज के वैज्ञानिक युग में अस्पष्ट नहीं है । शब्दशक्ति का प्रभाव मनुष्य से लेकर पेड़ पौधे तक काम कर रहा है। पौधे और पशुओं पर होने वाली संगीत - लहरियों के प्रभाव की घटनाएं हमने पढ़ी हैं, सुनी हैं । पशु अधिक मात्रा में दूध देने लगते हैं । पौधों का विकास संवर्द्धन शीघ्र होता है । अशुभ शब्दों का प्रभाव इसके विपरीत होता है । रंग - भारतीय मनीषियों ने रंगों के महत्व की भी खोज की है । मातृका - विवेक में अकार के सम्बन्ध में कहा है- अकार सर्व देवों वाला है, रक्त वर्ण वाला है, सबको वश करने वाला है । स्पर्श संज्ञा वाले 'क' से 'म' पर्यन्त ] अक्षर विद्रुम के समान वर्ण वाले हैं । 'य' से 'क्ष' तक के पीत वर्ण वाले हैं । किन्तु एक 'क्ष' अरुण वर्ण का है । कुछ लोगों का ऐसा भी मत है कि सभी वर्ण शुक्ल वर्ण वाले होते हैं । " ऋषि और छन्द -- प्रत्येक वर्ण का एक-एक मन्त्र माना गया है । इसलिए उसका अलग-अलग ऋषि, छन्द, देवता, शक्ति आदि होने का उल्लेख 'शारदा तिलकतन्त्र पदार्थादर्श टीका में है । मातृका -- वर्णमाला के समुदित रूप को मातृका कहते हैं । तन्त्र के अनेक ग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है। मातृका की महिमा का वर्णन भी कम नहीं है । तन्त्र में कहा है – 'न विधा मातृका परा' मातृका से परे और कोई विद्या नहीं है । महादेवी के रूप में उसकी वन्दना की गई है । 'मन्त्राणां मातृभूता च, मातृका परमेश्वरी' - यह मातृका मन्त्रों की माता के समान परमेश्वरी है । तंत्र शास्त्रों में मन्त्र माता के रूप में सम्मानित है । मातृकाओं के सात या आठ वर्ग का उल्लेख अधिकारी व्यक्तियों ने किया है- अ, क, च, ट, त, प, य, श । जैन साहित्य में भी मातृकाओं के ध्यान की चर्चा है । आचार्य शुभचक्र ने ज्ञान में कहा है Jain Education International परिशिष्ट - १ : ४२१ -: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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