Book Title: Sambodhi
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 490
________________ परिशिष्ट-१ : ४२७ (३) दांत परस्पर मिले हए न हों। (४) दृष्टि को, आंखों में जो की की' है, उस पर स्थिर करें। (५) शरीर सीधा रहे। पूरक-कुंभक-ऊर्ध्व-रेचन द्वारा धीरे-धीरे मंत्रोच्चार करना। इस उच्चारण के साथ-साथ कुंभित प्राण का धीरे-धीरे रेचन करना । युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जप के लिए इस प्रकार सुझाव देते हैं"जप के साथ चार बातें जुड़ी हुई हैं-पद, रंग, स्थान और श्वास की स्थिति । हम ‘णमो अरहताणं' को लें। इसका वर्ण है श्वेत और स्थान है मस्तिष्क, सहस्रार चक्र। इस पद का उच्चारण करते समय मन सहस्रार चक्र में स्थित हो और श्वेत वर्ण का चिन्तन हो, आभास हो। सहस्रार चक्र अर्थात् ब्रह्मरंध्र, तालु के ऊपर का भाग। हमारी स्थिति कुम्भक की हो। तो चारों बातें हो गयीं पद है---णमो अरहंताणं । रंग है-श्वेत । स्थान है-सहस्रार चक्र । श्वास की स्थिति है-कुम्भक । अन्तर् कुम्भक । 'णमो सिद्धाणं' को लें। इसका वर्ण है-लाल । इसका स्थान है-ललाट का मध्य भाग-आज्ञा चक्र । श्वास की स्थिति होगी-कुम्भक । णमो आयरियाणं' यह तीसरा पद है। इसका रंग है पीला। इसका स्थान है --विशुद्ध चक्र, गला। यह पवित्रता का स्थान है, चक्र है। हमारी सारी भावनाओं और आवेगों पर नियंत्रण रखने वाला यही स्थान है। श्वास की स्थिति होगी-अन्तर् कुम्भक । णमो उवज्झायाणं' यह चौथा पद है। इसका रंग है नीला। इसका स्थान है-हृदय कमल । श्वास की स्थिति है -कुम्भक । ‘ण मो लोए सव्वसाहूणं'- यह पांचवां पद है। इसका रंग है कृष्ण-- काला। इसका स्थान है पैरों का अंगूठा । श्वास की स्थिति है-कुम्भक । __पांचों पदों में वर्ण भिन्न हैं, स्थान भिन्न है। श्वास की स्थिति पांचों में समान है। तो प्रत्येक के साथ पद, वर्ण, स्थान और श्वास की स्थिति-चारों बातें जुड़ी हुई हैं। अब इसके साथ हमारे मन का पूरा योग रहना चाहिए। मन का योग होने से पांच बातें हो गई पांचों का विधिवत् योग होने से ही जप शक्तिशाली होता है। एक की भी कमी परिणाम में न्यूनता ला देती हैं। नमस्कार स्वाध्याय में 'ॐ' के ध्यान के सम्बन्ध में इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त होता है-'ॐ ह्रीं नमः' 'ॐ' वीजाक्षरों में सम्राट है। उसका सभी रंगों में १. (क) मन के जीते जीत, पृ० २२४ । (ख) नमस्कार मंत्र की जपविधि के लिए देखें-युवाचार्य महाप्रज्ञ द्वारा लिखित पुस्तक 'एसो पंच णमोक्कारो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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