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२६८ : सम्बोधि
सिवाय वहां कुछ था ही नहीं। फिर आपने इतनी चीजें कैसे लिखाई।' सन्त ने हंसते हुए कहा-'यही तो सब कुछ है। सर्दी में ओढ़ लेता हूं, गर्मी में बिछा लेता हूं, सिरहाने भी दे लेता हूं।'
धर्म जब सब कुछ हो जाता है तभी धर्म की सुगन्ध आ सकती है।
धर्म का सम्बन्ध बाह्य पदार्थ-जगत् से नहीं, वह आत्मा का गुण है और उससे वही मिलना चाहिए, जो कि उसके द्वारा प्राप्य है। धर्म से अन्य उपलब्धियों की चर्चा केवल रोते हुए बच्चे को खिलौना देकर चुप करने जैसी है। वे उसका स्वभाव नहीं हैं। विभाव से स्वभाव की उपलब्धि आकाश-कुसुम जैसी है। धर्म ज्ञान-दर्शन-चारित्र है। धर्म निज का उदात्त, शुद्ध, आनन्दमय स्वरूप है। उस धर्म का अनुचिन्तन कर, उसकी शरण में स्वयं को छोड़ कर साधक अन्तःस्थित महान् साथी (स्वयं) को प्राप्त कर लेता है। ___सुकरात को जहर दिया जा रहा था। किसी ने कहा- 'यदि आप बोलना बन्द कर दें तो सजा माफ की जा सकती है।' सुकरात रूढ़ियों के विरुद्ध और धर्म के यथार्थ स्वरूप की चर्चा करते थे। परम्परा के विरुद्ध बोलना लोगों को कैसे सहन हो सकता था ? सुकरात ने कहा—'जीवन को देख लिया, अब मृत्यु को भी देख लूंगा। किन्तु बोलना कैसे रुक सकता है ? मेरा होना ही सत्य के लिए है। मैं और सत्य भिन्न नहीं हैं। मेरे होने का अर्थ है-सत्य का उद्घाटन । इसलिए विष बड़ी चीज नहीं है, सत्य बड़ा है।' सुकरात को जहर दे दिया गया और वे अपनी मृत्यु की घटना को देखते-देखते विदा हो गये। अपने स्वरूप का परिचय करना धर्म भावना है।
(११) लोक भावना-सम्पूर्ण विश्व, जो पुरुषाकृति है, का चिन्तन करना लोक भावना है। जड़ और चेतन का यह आकाय-स्थल है। मनुष्य, पशु, पक्षी, स्थावर, सूर्य, चन्द्र, नारक, देव और मुक्तात्मा (सिद्धि-स्थान)—ये सब लोक की सीमा के अन्तर्गत हैं। साधक लोक की विविधता का दर्शन कर और उसके हेतुओं का विचार कर अपने अन्तःस्थित चेतना (आत्मा) का ध्यान करें। वह सोचे-राग और द्वेष की उठने वाली तरंगों का यह परिणाम है। लोक-भावना का अभिप्राय है-इस वैविध्य और वैचित्र्य का सम्यग् अवलोकन कर स्वयं को सतत तटस्थ बनाये रखना।
(१२) बोधि-दुर्लभ भावना-मनुष्य का जन्म दुर्लभ है और बोधि उससे अधिक दुर्लभ है। मौनीज यहूदी सन्त के मृत्यु की सन्निकट बेला थी। पुरोहित पास में खड़ा मन्त्र पढ़ रहा था। उसने कहा-'मूसा का स्मरण करो, यह अंतिम क्षण है।' मौनीज ने आंखें खोली और कहा, 'हटो यहां से । मेरे सामने नाम मत लो मूसा का।' पुरोहित को आश्चर्य हुआ, सब देखते रहे, यह कैसी बात? पुरोहित ने कहा - 'जीवन भर जिनका गीत गुनगुनाया, हजारों लोगों को सन्देश
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