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२६२ : सम्बोधि
१७. कोई न पहले श्रद्धालु होता है और न पीछे भी । कोई पहले भी श्रद्धालु होता है और पीछे भी ।
आत्मा इस संसार में अनन्तकाल से भ्रमण करती है । उसे अपने स्वरूप का ज्ञान नहीं हुआ । यह अज्ञान ही सारे क्लेशों की जड़ है। मोह कर्म का जब उपशमः या क्षयोपशम होता है तब आत्मा को अपना बोध होता है । अपने में उसकी श्रद्धा बढ़ जाती है | क्षय अवस्था में वह बोध चिरस्थायी बन जाता है, अन्यथा अज्ञान की फिर भी सम्भावना बनी रहती है । वह सन्देहशील बन जाती है । कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें कभी आत्म-बोध का अवसर ही नहीं मिलता। वे सदा मोह से आवृत रहते हैं । इसी आधार पर व्यक्तियों के चार विभाग किए गए हैं१ श्रद्धालु और संदिग्ध
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आचार्य आषाढ़भूति चातुर्मास के लिए अपने सो शिष्यों के साथ उज्जयिनी आये । चातुर्मास चल रहा था । लोग धर्मरस का रसास्वाद कर रहे थे । अकस्मात् नगर में महामारी का प्रकोप हो गया । अनेक लोग काल-कवलित होने लगे । महामारी की मार से आचार्य का शिष्य परिवार भी वंचित नहीं रहा। एक-एक कर निन्यानवे साधु उसकी चपेट में आ गये । आचार्य ने सबको समाधिस्थ रहने का मन्त्र देते हुए कहा - ' मरना सबको है । उसकी मृत्यु नहीं है जिसने स्वयं को जान लिया है। यह अवसर है, अपने मन को स्वयं में योजित करो ।' सबके सब शिष्य समाधि-मृत्यु को प्राप्त हुए । आचार्य ने एक-एक कर सबको कहा था - एक बार स्वर्ग से पुनः लौटकर आना । किंतु आश्चर्य की बात है, कोई नहीं आया । छोटा शिष्य जो अंत में विदा हुआ था, वह भी नहीं आया । तब आचार्य की आस्था का आधारभूत भवन प्रकंपित हो गया। उन्होंने सोचा न स्वर्ग है और न नरक | ये सब झूठ हैं । साधु जीवन को छोड़कर आचार्य आषाढ़भूति ने अपना मुख पुनः संसार की ओर कर लिया ।
जैसे ही आचार्य साधु जीवन का त्यागकर निकले कि उस छोटे शिष्य का (देव आत्मा का ) आसन प्रकंपित हुआ । उसने अपने ज्ञान से जाना कि आचार्य विदा हो गए हैं । वह आया उसने मार्ग में एक नाटक रचा। आचार्य उसे देखने में व्यस्त हो गए । नाटक पूरा हुआ, आगे बढ़े। कुछ छोटे- छोटे छह बच्चे वन्दना कर सामने आये । गहनों से लदे थे । आचार्य के मन में लोभ जागा । उन्होंने छहों बच्चों को मारकर गहनों से झोली भर ली। आगे कुछ बढ़े ही थे कि इतने में अनेक लोग सामने आ गए। भोजन के लिए लोगों ने हट किया । आचार्य के इंकार करने पर भी लोग जबरदस्ती से झोली पकड़ कर उसमें भोजन डालने लगे जब गहनों को देखा तो लोग अवाक् रह गए। किसी ने कहा- यह मेरे लड़के का
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