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२६० : सम्बोधि
(१) सबसे पहले आवश्यक है-जागरण । साधक अपने मन, वाणी और शरीर के प्रति पूर्ण होश से भरे रहने का सतत प्रयत्न करे। जब भी चित्त में काम का तूफान उठे, उसे देखे, विचार करे, यह क्या हो रहा है ? मैं कहां जा रहा हूं? क्यों अपना होश खो रहा हूं ? क्या मिला है इससे ? काम-वासना के साथ बहे नहीं, रुके और ध्यान करे, मन को ऊपर ले जाए और उसे सहस्रार पर स्थिर
करे।
(२) मूल-बन्ध-श्वास का रेचन कर नाभि को भीतर सिकोड़ कर गुदा को ऊपर खींचना मूल-बन्ध है। मूल-बन्ध का अभ्यास और पुनः पुनः प्रयोग भी काम-विजय में सहायक है। - (३) आसन-सिद्धासन, पद्मासन, पादांगुष्ठासन आदि भी इसमें उपयोगी होते हैं। काम-केन्द्रों पर दबाव डालकर वासना को निर्जीव किया जा सकता है।
(४) योगियों ने इसके लिए विविध प्राणायामों का प्रयोग भी किया है । जो वीर्यशक्ति को सहस्रार में स्थित कराता है, वैसा अभ्यास भी साधक के लिए अपेक्षित है। 'श्वास विज्ञान' पुस्तक में से एक प्राणायाम का प्रयोग नीचे प्रस्तुत किया जाता है
जनन शक्ति को परिवर्तित करना-प्राणशक्ति रज या वीर्य में संग्रहीत है। जननेन्द्रिय प्राणियों के जीवन में प्राण का एक कोष रूप हैं । उत्पादन उनका कार्य है। इस शक्ति का प्रयोग विध्वंस में भी किया जा सकता है और विकास में भी। इस काम शक्ति को विध्वंसात्मक न बनाकर विकास में योजित करना मानव की बुद्धिमत्ता है। इसका अभ्यास सरल है। ताल-युक्त श्वास एक साधन है। तालयुक्त श्वास का महत्व अत्यन्त स्पष्ट और प्रभावकारी है तथा अनेक विध प्रयोगों को सफल बनाने वाला है। ___ 'शान्त होकर सीधे बैठ जाओ या लेट जाओ और कल्पना करो कि जननशक्ति को नीचे से खींचकर ऊपर सौर्यकेन्द्र में ला रहे हैं, जहां यह जननशक्ति परिवर्तित होकर प्राणरूप में संचित रहेगी। ध्यान शक्ति पर रहे। काम की कल्पना न हो, अगर आ जाये तो चिंता न करें। इस कल्पना के साथ अब तालयुक्त सम मात्रा में श्वास लें। प्रत्येक श्वास में मैं शक्ति को ऊपर खींच रहा हं, और दृढ़ इच्छा से आज्ञा दो कि शक्ति जननेंद्रिय से खिंच कर सौर्य-केन्द्र में चली आये। यदि ताल ठीक जम गया और कल्पना स्पष्ट हो गयी होगी तो यह स्पष्ट पता चलेगा कि शक्ति ऊपर आ रही है और उसकी उत्तेजना का अनुभव भी हो रहा है। यदि मानसिक बल बढ़ाना हो तो शक्ति को मस्तिष्क में भेजो, उसी के अनुकल आज्ञा दो और कल्पना करो। प्रत्येक श्वास में शक्ति को ऊपर खींचो और प्रत्येक निश्वास में निर्दिष्ट स्थान पर भेजो। इससे आवश्यक शक्ति कार्य में योजित होगी और शेष सौर्य-केन्द्र में संचित रहेगी।
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