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३६८ : सम्बोधि
अनुत्पन्नानकुर्वाणः, कलहांश्च पुराकृतान् । नयन्नुपशमं नूनं, लप्स्यसे मनसः सुखम् ॥७॥
७. तू नये सिरे से कलहों को उत्पन्न मत कर और पहले किए हुए कलहों को उपशान्त कर, इस प्रकार तुझे मानसिक सुख प्राप्त होगा।
क्रोधादीन् मानसान वेगान्, पृष्ठमांसादनं तथा। परित्यज्याऽसहिष्णुत्वं, लप्स्यसे मनसः स्थितिम् ॥८॥
८. क्रोध आदि मानसिक वेगों, चुगली और असहिष्णुता को छोड़, इस प्रकार तुझे मन की स्थिरता प्राप्त होगी।
जार्ज गुरजिएफ ने कहा है-'तुमने जो पाप किए हैं इनके कारण परमात्मा तुम्हें नरक नहीं भेज सकता, क्योंकि ये सब तुमने बेहोशी में किए हैं। बेहोश को अदालत भी माफ कर देती है।' महावीर ने मेघ को शांतिसूत्र दिया है-वर्तमान क्षण में जीना-'खणं जाणाहि पंजिडए।' आदमी जीते हैं अतीत और भविष्य में. स्मृति और कल्पना में जीने का अर्थ है-बेहोशी--प्रमाद में जीना । 'समयं गोयम मा पमायए'-महावीर का यह जागरूकता अप्रमत्तत्ता का संदेश लाखों, करोड़ों व्यक्तियो की जबान पर है, किन्तु कितने व्यक्तियों के जीवन का स्पर्श कर रहा है यह कहना कठिन है। वर्तमान या होश में जीने का अर्थ है-भविष्य में पाप का न होना । जो साधक मन के प्रति और शरीर के प्रति जागृत रहता है वह अन्तर में उठनेवाली असत् तरंगों का वहीं निर्मूलन कर देता है, बाहर प्रकट नहीं होने देता और सतत शुभ भावों, संकल्पों से स्वयं को प्रवाहित रखता है। क्रोधादि वेगों का प्रभाव बेहोशी में ही होता है । जार्ज गुरजिएफ साधकों को क्रोध करने के लिए कहता। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करता कि व्यक्ति आग-बबूला हो जाता। जब पूरे क्रोध में आ जाता है तब कहता-'देखो! क्या हो रहा है ? आदमी चौंककर देखता, हाथ, चेहरा, होंठ, आंखें और शरीर को एक विपरीत अस्वाभाविक दशा में और वह एक क्षण में उससे पृथक् हो जाता। समस्त पापों, अशुभों से बचने और दूर रहने का मौलिक सूत्र है-देखना, सावधान रहना ।
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