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२८६ : सम्बोधि
आत्मा आत्मा है और अनावृत आत्मा परमात्मा । उनमें स्वरूप-भेद नहीं, केवल अवस्था-भेद है।
स्थूलदेहस्य मुक्त्याऽसौ, भवान्तरं प्रधावति । अन्तरालगति कुर्वन्, ऋजुं वक्रां यथोचिताम् ॥१२॥
१२. औदारिक या वैक्रिय शरीर स्थूल कहलाते हैं। इनसे मुक्त होने पर आत्मा भवान्तर में जाते समय जो गति करती है वह 'अन्तराल-गति' कहलाती है । अन्तराल-गति के दो प्रकार हैंऋजु और वक्र । जो आत्मा समश्रेणी में उत्पन्न होती है वह, ऋजु गति करती है और जो विषम श्रेणी में उत्पन्न होती है, वह वक्र गति करती है।
यावत् सूक्ष्मं शरीरं स्यात्, तावन्मुक्तिर्न जायते । पूर्णसंयमयोगेन, तस्य मुक्तिः प्रजायते ॥१३॥
१३. जब तक सूक्ष्म शरीर (तैजस और कार्मण) विद्यमान रहता है, तब तक आत्मा मुक्त नहीं होती। आत्मा की मुक्ति पूर्ण -संयम के द्वारा होती है।
___ शरीर मुक्ति का बाधक है । मुक्तात्मा का पुनः जन्म नहीं होता। अवतार वही आत्माएं लेती हैं जो सशरीरी हैं। शरीर पांच हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। संसारी के दो और तीन शरीर सदा रहते हैं। कुछ आत्माओं में पांच शरीरों की योयता भी रहती है। दो शरीर में आत्मा अधिक देर नहीं रहती। उसे तीसरा शरीर शीघ्र ही धारण करना होता है। दो शरीरों का जघन्य कालमान एक समय है, और उत्कृष्ट दो, तीन या चार समय । ये दो सूक्ष्म शरीर अन्तराल गति में होते हैं। आत्मा जब एक स्थूल शरीर को छोड़कर दूसरे -स्थूल शरीर में प्रवेश करती है उस गमन को अन्तराल गति कहते हैं।
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