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अध्याय १२ : २४५
१२. कायोत्सर्ग, पर्यक आसन, वीरासन, पद्मासन, गोदोहिकासन उत्कटिकासन आदि आसन करना कायक्लेश है।
कायक्लेश के चार प्रकार हैं : १. आसन१. कायोत्सर्ग-शरीर की सार-सम्हाल छोड़कर तथा दोनों भुजाओं को
नीचे की ओर झुकाकर खड़ा रहना अथवा स्थान, ध्यान और मौन के अतिरिक्त शरीर की समस्त क्रियाओं को त्यागकर
बैठना। २. पर्यंक आसन-जिन-प्रतिमा की भांति पद्मासन में बैठना। ३. वीरासन-बद्ध-पद्मासन की भांति दोनों पैरों को रखकर हाथों को
पद्मासन की तरह रखकर बैठना। सिंहासन पर बैठाकर उसे
निकाल देने पर जो मुद्रा होती है उसे भी वीरासन कहते हैं। ४. पद्मासन-जंघा के मध्य भाग में दूसरी जंघा को मिलाना। ५. गोदोहिका आसन-घुटनों को ऊंचा रखकर पंजों के बल पर बैठना
तथा दोनों हाथों को दोनों साथलों पर टिकाना। ६. उत्कटिकासन ---दोनों पैरों को भूमि पर टिकाकर दोनों पुतों को भूमि
से न छुआते हुए जमीन पर बैठना। २. आतापना—सूर्य की रश्मियों का ताप लेना, शीत को सहन करना । निर्वस्त्र
रहना। ३. विभूषावर्जन-किसी भी प्रकार का शृंगार न करना। ४. परिकर्मवर्जन-शरीर की सार-सम्हाल न करना।
भगवान् ने कहा-'गौतम ! सुख-सुविधा की चाह से आसक्ति बढ़ती है। आसक्ति से चैतन्य मूच्छित होता है । मूर्छा धृष्टता लाती है । धृष्ट व्यक्ति विजय का पथ नहीं पा सकता। इसीलिए मैंने यथाशक्ति कायक्लेश का विधान किया है।'
मेघः प्राह
सर्वदर्शिस्त्वया धर्मः, घोरोऽसौ प्रतिपादितः ।
दुःखविच्छित्तये सोऽयं, तत्र दुःखं किमिष्यते ? ॥१३॥ १३. सर्वदशिन् ! आपने घोर धर्म का प्रतिपादन किया है।
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