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५० | सद्धा परम दुल्लहा चार आदि ग्रन्थों में सात ही पदार्थों को तत्वभूत माना गया है
"जीवाजीवासव बंध संवरो, णिज्जरा तहा मोक्खो।
एयाइ सत्त तच्चाई, सद्दहंतस्स सम्मत्तं ॥1
जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व (जिनोक्त तत्वभूत पदार्थ) हैं, इन पर श्रद्धा करना सम्यक्त्व-सुश्रद्धा है । सात पदार्थ ही तत्त्वरूप क्यों ?
प्रश्न होता है कि ये सात पदार्थ ही तत्वरूप क्यों बताये गए, कम या अधिक क्यों नहीं ?
इस प्रश्न के समाधान के लिए हम एक लौकिक उदाहरण प्रस्तुत करते हैं
किसी रोगी व्यक्ति को रोग को सर्वथा मिटाकर पूर्ण स्वस्थ होना हो तो उसे इन सात तत्वों को जानना और इन पर श्रद्धा करनी होगा। (१) मेरा मूल स्वभाब स्वस्थ-निरोग रहना है, (२) पर वर्तमान में किस विजातीय पदार्थ के संयोग से, कौन सा रोग आ गया है ?, (३) रोग का कारण क्या है ?, (४) रोग का निदान, (५) रोग को रोकने का-अपथ्य सेवन निषेधरूप उपाय, (६) पुराने रोग को नष्ट करने के लिए योगऔषध सेवन, (७) पूर्ण स्वस्थ अवस्था का स्वरूप ।
जिस प्रकार इन और ऐसे लौकिक कार्यों की सफलता के लिए उपर्य क्त सात तथ्यों का जानना और उन पर श्रद्धा करना आवश्यक है, वैसे ही आत्मा की पूर्ण स्वस्थता अथवा समस्त दुःखों के सर्वथा विनाश एवं अनन्त आत्मिक सुख की प्राप्ति जैसे लोकोत्तर कार्य की सफलता के लिये भी जिनेन्द्र भगवंतों ने पूर्वोक्त सात तथ्यों का निर्धारण किया है उन्हें जानना, मानना और उन पर श्रद्धा करना आवश्यक है- (१) मैं-जिसे आत्मिक अनन्त सुख चाहिए, वह (जीव) क्या है ? (२) सम्पर्क में आने वाला विजातीय पदार्थ (अजीव) क्या है ? (३) दुःख और अशान्ति का कारण [आस्रव] क्या है ? (४) दुःख और अशांति क्या है ? [बन्ध], (५) नये आने वाले] दुःखों को रोकने का उपाय (संवर) क्या है ? (६) पुराने दुःखों के कारणों का नाश [निर्जरा] कैसे हो? और (७) अनन्त सुखशांति की अवस्था का स्वरूप क्या है ?
१ वसुनन्दि श्रावकाचार गा. १०
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