Book Title: Saddha Param Dullaha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 388
________________ आस्तिक्य का द्वितीय आधार : लोकवाद | २३७ द्रव्यलोक का अस्तित्व निर्णय और मूल्यनिर्णय आस्तिक्य के लिए षड्द्रव्यात्मक लोक का अस्तित्व निर्णय और मूल्यनिर्णय दोनों का होना आवश्यक है। किसी भी वस्तु का अस्तित्व तो स्वयंसिद्ध होता है, किन्तु उसका यथार्थ मूल्यांकन करना, सम्यग्दृष्टि या तत्त्वज्ञ का कार्य है । उदाहरणार्थ - चावल सफेद है, इसे प्रायः सभी जानते हैं । किन्तु चावल उपयोगी है या अनुपयोगी ? किसके लिये कितना और कब, किस रूप में उपयोगी है, अथवा अनुपयोगी है इसका मूल्यनिर्णय आत्मा (चेतना) से सम्बद्ध हुए बिना नहीं होता । अतः जो पदार्थ इन्द्रियगोचर नहीं होते, या इन्द्रियगोचर होते हुए भी साधारण मानव द्वारा जिनका यथार्थ मूल्यांकन नहीं होता, अथवा अतीन्द्रिय होने पर भी साधारण आत्मा द्वारा वे प्रत्यक्ष नहीं होते, उनका अस्तित्वनिर्णय एवं यथार्थ मूल्यनिर्णय परमचेतना से - विशिष्ट प्रत्यक्षज्ञानियों-सर्वज्ञों (केवलज्ञानियों) द्वारा किया जाता है । छद्मस्थ पुरुषों की दृष्टि वस्तुतत्त्व का पूर्णतया सम्यक् निर्णय करने में समर्थ नहीं होती । इन्द्रियगोचर वस्तु का भी यथार्थ मूल्यनिर्णय व्यक्ति की सम्यग्दृष्टि हो तभी हो सकता है । और अतीन्द्रिय वस्तु का तो अस्तित्व निर्णय एवं यथार्थ मूल्यनिर्णय वीतराग सर्वज्ञ आप्त पुरुषों द्वारा ही हो सकता है । उन्हीं के द्वारा किया हुआ निर्णय मान्य किया जाता है । वीतराग सर्वज्ञ पुरुषों ने विश्व को षड्द्रव्यात्मक कहकर उनका पृथक् पृथक् अस्तित्व और गुण धर्म (उपयोगिता ) बताया है । षड्द्रव्यात्मक लोक का अस्तित्व बताने के साथ-साथ उन्होंने लोक के अन्तर्गत इन छह द्रव्यों के सह-अस्तित्व, उपकारकता और उपयोगिता का भी निरूपण किया है । अर्थात् उन्होंने इन छह द्रव्यों के गुणधर्म, उपयोगिता, परस्परउपकारकता, एवं आत्मा के लिए षड्द्रव्यों में से हेय - ज्ञेय उपादेय का विवेक भी बताया है । काल को औपचारिक रूप से ( श्वेताम्बर - परम्परा में) द्रव्य माना गया है, वस्तुवृत्त्या नहीं। इसलिए काल के सिवाय शेष पाँच द्रव्यों को 'पंचास्तिकाय' माना गया है । कालद्रव्य के प्रदेश न होने से इसे अस्तिकाय नहीं कहा गया । fron यह है कि जिन षद्रव्यों के अस्तित्व का निर्णय किया है, उनका द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दोनों नयों की दृष्टि से मूल्यनिर्णय करना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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