Book Title: Saddha Param Dullaha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 442
________________ आस्तिक्य का चतुर्थ आधार : क्रियावाद | २६१ संसार में जिन पदार्थों का अस्तित्व है, उनके अस्तित्व को क्रियावादी स्वीकार करता है और जिन पदार्थों का नास्तित्व है, उन्हें वह स्वीकार नहीं करता। क्रियावादी : सम्यग्दृष्टि हो आस्तिक क्रियावादी भी अगर एकान्तवाद का आश्रय लेता है तो वह मिथ्यादृष्टि है । जो क्रियावादी एक मात्र क्रिया को ही या चारित्र को ही मोक्ष का साधन मानता है, जो ज्ञान और दर्शन को कोई आवश्यकता नहीं समझता वह शुष्क क्रियावादी, एकान्तवादी होने से मिथ्यादृष्टि है। इसलिए प्रस्तुत सन्दर्भ में सम्यग्दृष्टि क्रियावादी वह है-~जो सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक सम्यक्चारित्र को ही मोक्षमार्ग मानता और जानता है । इसी क्रियावाद का समर्थन करते हुए भ० महावीर कहते हैं दसण-नाण-धरित्तं तव-विणए सच्च-समिइ-गुत्तिम् । जो किरिया भावरुई सो खलु किरियाई नाम।" जिसकी भावरुचि दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति, और गुप्तियों में है। अर्थात् जिसकी क्रियारुचि ज्ञानादिपूर्वक सम्यक्चारित्र में है, वह क्रियारुचि सम्यक्त्वी वास्तविक क्रियावादी है । सारांश यह है कि क्रियावादी कहता है-लोकवाद को मानो । मनोरम कामभोगों में फंसकर अपना इहलोक-परलोक मत बिगाड़ो। कष्टों को समभावपूर्वक सहने से निर्जरा और निर्जरा से आत्मशुद्धि होती है। परन्तु अक्रियावादी कहता है - 'दीर्घकाल के पश्चात् मिलने वाला परलोक किसने जाना-देखा है ? इन प्रत्यक्ष सुखों को छोड़कर अदृष्ट परलोक के परोक्ष सुखों के चक्कर में पड़ना मूर्खता है। ये कामभोग हाथ में आए हुए हैं, इनका ही उपभोग कर लो।" कर्मवाद के सन्दर्भ में क्रियावादी कहते हैं-प्राणी जो भी अच्छा-बुरा कर्म करता है, उसे उसका फल भोगना ही पड़ता है। शुभ कर्मों का फल शुभ और अशुभ कर्मों का अशुभ फल अवश्य मिलता है । जीव अपने पुण्यपाप कर्मों के साथ ही परलोक में उत्पन्न होता है। पुण्य-पाप दोनों का क्षय होने पर असीम आत्मिक सुखमय मोक्ष की प्राप्ति होती है । क्रियावाद एवं अक्रियावाद का परिणाम क्रियावादियों की उक्त विचारधारा के फलस्वरूप भव्यजनों में धर्म रुचि बढ़ी, तप, त्याग, संयम की वृत्ति जागी। अल्प-इच्छा, अल्प-परिग्रह, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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