________________ सन्ट परमदुल्लहा बुद्धि वरत का विश्लेषण कर सकती है, किंतु उसके भावात्मक खरूप का दर्शन करने के लिए श्रद्धा नितान्त आवश्यक है। श्रद्धा-शून्य बुद्धि केवल भटकन है। श्रद्धा रहित तर्क गतिमान चरणों में अस्थिरता और लड़खड़ाहट पैदा कर सकती है। किन्तु मंजिल के पार तक देखने की दिव्य दृष्टि और कदम-कदम जमा कर चलने की स्थिरता तो श्रद्धा ही दे सकती है। भावना शून्य तर्क और विवेक शून्य श्रद्धा दोनों ही जहर है। विवेक युक्त श्रद्धा एवं सम्यक श्रद्धायुक्त तर्क अमृत है। प्रस्तुत 'सद्धा परम दुल्लहा' में सम्यक श्रद्धा किंवा विवेकवती प्रज्ञा का सम्बल लेकर जीवन-सागर को सुरक्षित पार करने वाली विचार नौका का भव्य स्वरूप प्रकट हुआ है। विचारशील लेखक हैं - उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री। आपकी सम्यक प्रज्ञा में श्रद्धा एवं तर्क का मधुर सामंजस्य है। आपका सुदर्शन तथा प्रभावक व्यक्तित्व विनम्रता व स्वतंत्रचिन्तन शीलता के कारण सम्पूर्ण समाज का श्रद्धा भाजन है। www.jainelibrary.org Jain Education International EO PRVE