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आस्तिक्य का तृतीय आधार : कर्मवाद
कर्मवाद क्या है ? - आत्मवाद और लोकवाद को मानने वाले व्यक्ति को कर्मवाद का मानना अनिवार्य है । यदि वह यह मानता है कि आत्मा मूल स्वभाव से सच्चिदानन्द रूप है, फिर भी इहलोक में नाना दुःख क्यों पाता है ? परलोक में भी कोई स्वर्ग पाता है, कोई नरक; और किसी को मनुष्यगति में जन्म मिलता है। ऐसी विविधता का क्या कारण है ? थोड़े से कार्य-कारण भाव का चिन्तन करने पर स्वाभाविक ही उसे ज्ञात हो जाएगा कि इस विविधता का कारण कर्म ही है। इस प्रकार कर्मों के अस्तित्व को मानना उन पर दृढ़ आस्था रखना, कर्मों का आत्मा के साथ बन्ध भी होता है, वे छूट भी सकते हैं। नये कर्म भी आते हैं और उन्हें रोका भी जा सकता है। इस प्रकार शुद्ध आत्मा के साथ कर्मों के संयोग का विचार करके वे कर्म आत्मा से पृथक् (विमुक्त) भी हो सकते हैं, मनुष्य कर्मों से एक दिन सर्वथा मुक्त शुद्ध-आत्मा-परमात्मा बन सकता है, इस प्रकार का दृढ़ विश्वास रखना ही कर्मवाद है । यही कर्मवाद आस्तिक्य का तीसरा प्रमुख आधार है ।
कर्मों को क्यों माना जाए? यह कहा जाता है कि संसार के सभी प्राणियों की आत्मा स्वभाव से जब शुद्ध है, आत्मा और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है, तब फिर
१. बन्ध, निर्जरा, आस्रव, संवर और मोक्ष का विचार करना । २. (क) अप्पा सो परमप्पा । - (ख) सिद्धां जैसो जीव है, जीव सो ही सिद्ध होय ।
कर्ममल का आंतरा बूझे विरला कोय ।
- बृहदालोयणा
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