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२८८ | सद्धा परम दुल्लहा
नरकों में नैरयिक जीवों का और स्वर्गों में देवों का निवास है। नारकीय जीव नरकों में और स्वर्गों के जीव देवलोकों में दीर्घकाल तक क्रमशः पाप और पुण्य के कड़वे-मीठे फल भोगते हैं।
तिर्यञ्चों का अस्तित्व-एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक जो तिर्यंच जीव हैं, क्रियावादी उनका अस्तित्व मानते हैं। उनका कहना है कि अपनी-अपनी चेतना के विकास अथवा आत्मा पर आये हए न्यूनाधिक कर्मावरणों के फलस्वरूप जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक की तिर्यंचयोनि में जन्म लेते हैं । एकेन्द्रिय में पृथ्वीकायिक, अत्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की गणना होती है। इसमें इसी प्रकार की काया धारण किये हुए जीव होते हैं । वैसे आगम प्रमाण से, युक्तियों एवं अनुमान से एकेन्द्रियों में जीवों का अस्तित्व सिद्ध होता ही है; परन्तु वर्तमान विज्ञान ने भी एकेन्द्रिय पथ्वी (Living Soil or Earth), पानी (Water), अग्नि (Fire), वायु (Air) और वनस्पति (Vegetable) में जीव का अस्तित्व प्रमाणित किया है । इसके पश्चात् स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों वाले (द्वीन्द्रिय), स्पर्शन, रसना, और घ्राण, इन तीन इन्द्रियों वाले (त्रीन्द्रिय), स्पर्शन, रसना, घ्राण और नेत्र, इन चार इन्द्रियों वाले (चतुरिन्द्रिय) एवं स्पर्शन, रसना, घ्राण, नेत्र और कर्ण, पाँच इन्द्रियों वाले (पंचेन्द्रिय) तिर्यञ्च प्राणी तो प्रत्यक्ष सिद्ध हैं। पंचेन्द्रिय में जलचर, स्थलचर, खेचर, उरःपरिसर्प और भुजपरिसर्प; यों पाँच प्रकार प्राणी होते हैं। इन सब जीवों की अपनीअपनी पृथक् सत्ता है । ये अपने-अपने कृत कर्मों के फलस्वरूप दुःख-सुख भोग रहे हैं । इन सबको अपना-अपना जीवन प्रिय है । सभी जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता। इसलिए क्रियावादियों का मन्तव्य है कि एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों को मारना, सताना, पीटना, पीड़ा पहुँचाना पाप है, क्योंकि इनमें भी हमारी तरह आत्मा है। परन्तु अक्रियावादी लोग इनमें आत्मा नहीं मानते । कुछ लोग इन सब जीवों में प्राण मानते हैं, और कहते हैं-प्राण जड़ हैं। अतः इनको मारने में कोई दोष नहीं। कतिपय अक्रियावादी मांसाहारी मानते हैं कि अगर इन्हें मार कर खाया न जाए तो इनकी संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती जाएगी। इनका जीना तो दूभर हो ही जाएगा, हमारा जीना भी दूभर हो जाएगा। परन्तु इस भयंकर हिंसा का प्रतिफल कभी इस लोक में और कभी परलोक में नाना दुःखों, पोड़ाओं आदि के रूप में भोगना होगा, तब नानी याद आ जाएगो । अनुभव बताता है कि प्राणघातक व्याधि, विपत्ति, मृत्यु के समय बड़े-बड़े नास्तिक कांपने लगते हैं । आचारांग सूत्र में बताया गया है कि प्रायः अक्रियावादी
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