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सम्यग्दृष्टि का चौथा चिन्ह : अनुकम्पा
आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश कब और कैसे ? सम्यग्दर्शन आध्यात्मिक विकास का प्रवेशद्वार है। आध्यात्मिक विकास का प्रवेश चतुर्थ गूणस्थान से होता है। जब व्यक्ति संकुचित स्वार्थवृत्ति को छोड़कर परमार्थ वृत्ति को धारण करता है, तब से आध्यात्मिक जीवन में उसका प्रवेश होता है। कीट, पतंग, पशु, पक्षो आदि तिर्यञ्च जीवों में प्रायः संकुचित स्वार्थवृत्ति होती है। वे अपने ही सुख की, अपनी ही उदर पूर्ति की, अपने ही टोले की, इससे किंचित् आगे बढ़े तो अपने ही झुण्ड या वर्ग के स्वार्थ की बात सोचते हैं। एक बैल के पास घास-चारा बहुत पड़ा है, उसने पेट भर कर खा लिया है। थोड़ी-सी दूर पर एक दूसरा बैल है, उस बेचारे ने कुछ खाया नहीं है, उसके पास घास-चारा नहीं है। वह भूखा है। फिर भी पेट भरा हुआ वह बैल उसे मनुहार करके कदापि खिलाएगा नहीं, न ही खाने के लिए बुलाएगा, बल्कि अगर वह उसके पास घास-चारा खाने के लिए आएगा, तो उसे सींग मारकर उसे दूर भगा देगा। एक गली या एक गाँव का कुत्ता, दूसरी गली या दूसरे गाँव में चला जाएगा तो उस गली या गाँव वाला कुत्ता उसका स्वागत करना तो दूर रहा, उसे भौंक कर अपनी गली या गाँव से बाहर खदेड़ देगा। यह तो पंचेन्द्रिय जाति के तिर्यञ्चों की बात है । एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय प्राणियों का तो आध्यात्मिक विकास में प्रवेश होता ही नहीं। .
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