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आस्तिक्य का मूल : आत्मवाद
आस्तिक्य का महल चार आधार स्तम्भों पर
जिसे उत्कृष्ट आस्था कहा जाता है, वही आध्यात्मिक जीवन का आस्तिक्य है । यही सम्यग् दृष्टि का पांचवा चिन्ह है । आचारांग सूत्र में इसी आस्तिक्य के क्रमशः चार आधार स्तम्भ बताये गए हैं
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'से आयावाई लोगावाई कम्मावाई किरियावाई "
इसका भावार्थ यह है कि जो आस्तिक ( उत्कृष्ट आस्थावान् ) होगा, वह आत्मवादी होगा, जो आत्मवादी होगा, वह अवश्य ही लोकवादी होगा, और जो लोकवादी होगा, वह कर्मवादी होगा, तथा जो कर्मवादी होगा, वह अवश्य ही क्रियावादी होगा ।
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इसे वर्तमान युग की भाषा में यों समझा जा सकता है - ( १ ) आत्मवाद - मैं कौन हूँ, क्या हूँ ? (२) लोकवाद - मैं मरकर कहाँ कहाँ जाता हूँ ? (३) कर्मवाद - मुझे क्या करना है, क्या नहीं ? और (४) क्रियावाद - मैं विकृति से प्रकृति में, परभाव या विभाव से स्वभाव दशा में, या अधर्म-पाप
से धर्माचरण में किस माध्यम से आ सकता हूँ ? इस प्रकार आत्मवाद को मानने के साथ-साथ लोकवाद, कर्मवाद एवं क्रियावाद को भी मानना आवश्यक हो जाता है । निष्कर्ष यह है कि आस्तिक्य का महल, आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद और क्रियावाद इन चार आधार स्तम्भों पर टिका हुआ है । ये चारों वाद श्रृंखला की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं । उत्कृष्ट आस्था
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१. आचारांगसूत्र १ श्र. १ अ. सु. ५
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