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आस्तिक्य का मूल : आत्मवाद | २२६
आवरण से आत्मा को मुक्त करने के लिए बाह्य और आभ्यन्तर तप अनायास ही कर लेता है। शरीर यदि धर्मध्यान करने में अशक्त हो जाए, आयुष्य काल निकट आ जाए या कोई तीव्र आकस्मिक मरणान्त कष्ट आ पड़े तो आत्मवादी समाधिमरण के लिए चारों आहार और अठारह पापस्थान का त्याग करके याज्जीव अनशन करने में देर नहीं करता।
आत्मवादी और अनात्मवादो के व्यवहार में अन्तर आत्मवादी मानव अपने शरीर से सम्बन्धित स्त्री, पुत्री, पुत्र, तथा माता-पिता, मामा, दादा आदि सम्बन्धों को शरीरसम्बन्ध या स्वार्थ-सम्बन्ध की दृष्टि से नहीं, अपितू आत्मिक सम्बन्ध की द ष्टि से देखता -- सोचता और तदनुसार व्यवहार करता है जबकि अनात्मवादी ऐसा नहीं करता। आज पश्चिमी देशों में वृद्ध माता-पिता उनके पुत्रादि की ओर से उपेक्षित हैं । अधिकांश वृद्धों को आत्मीयता या सहायता के बिना जीवन यापन करना भारी पड़ रहा है, अतः वे आत्महत्या जैसे जघन्य कृत्य पर उतारू हो रहे हैं। पाश्चात्य जगत् में अधिकांश माँ-बाप अपने बच्चों को भारभूत मानते हैं अतः उनका पालन ठीक ढंग से नहीं हो पाता। सौन्दर्य को हानि न पहँचे, इसके लिए अधिकांश अनात्मवादी माताएं अपने बच्चों को स्तनपान न कर। कर बोतलों का दूध पिलाती हैं। अधिकांश बच्चे पालनगृहों में पलने के लिए दे दिये जाते हैं। जैसे ही लड़का कमाऊ या विवाहित हुआ कि माता-पिता से कोई सम्बन्ध नहीं रखता। आत्मा पर अनास्था वाली माताएँ प्रायः अपने बच्चों के पालन-पोषण और सुसंस्कार प्रदान की ओर ध्यान नहीं देतीं। माता की निगाह बदलने पर बाप तो उनकी तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखता । अनास्थावान् माता-पिता का अपनी सन्तान के प्रति बेरुखेपन का नतीजा बुढ़ापे में उनकी सन्तान की ओर से उपेक्षा हो जाना स्वाभाविक है । आखिर वे भी बूढ़े होते हैं तो अपनी सन्तान से उन्हें भी सहायता की कोई आशा नहीं रहती। यह आत्मवाद को न मानने का परिणाम है । आत्मवाद को न मानने वाले पति-पत्नी का दाम्पत्य जीवन भी स्वार्थों की शतरंज बन जाता है। ऐसे दाम्पत्य जीवन का उद्देश्य प्रायः कामुकता की तृप्ति एवं अर्थ-सुविधा होती है । फलतः निराशा, मानसिक क्लेश, उद्वेग, अविश्वास आदि ही अनास्थावान् दम्पत्ति के जीवन बैंक का बैलेंस रह जाता है । __इसके विपरीत आत्मवादी की अपने कुटुम्ब, परिवार, ग्राम, नगर, राष्ट्र एवं समाज के मानवों के प्रति ही नहीं, विश्व की समस्त आत्माओं (प्राणियों) के प्रति आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना होती है । आत्मोपम्य
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