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सफलता का मूलमंत्र : विश्वास | १७
___ ज्ञेय की अपेक्षा श्रद्धय का क्षेत्र विशाल विश्व के जीवन से सम्बन्धित समग्र विषयों को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-ज्ञय और श्रद्धेय । जिन विषयों की मनुष्य को जानकारी होती है, वे विषय उसके लिए ज्ञेय होते हैं । उन विषयों में किसी से परामर्श लेने या जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु जिस विषय का किसी व्यक्ति को ज्ञान नहीं है, जिस विषय से जो अभी तक अपरिचित या अनभिज्ञ है, या जो विषय अतीन्द्रिय है, उस विषय में उसके विशेषज्ञ पर विश्वास रखकर उसके द्वारा सुचित मार्ग पर चलना पड़ता है । आशय यह है कि जो विषय किसी मनुष्य के ज्ञान के प्रकाश में प्रतीत नहीं होते, वे सभी विषय उसके लिए श्रद्धेय बनते हैं ।
सामान्य मनुष्य सभी विषयों का ज्ञाता नहीं होता, प्रायः मनुष्य का ज्ञान बहुत ही सीमित होता है । सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए काफी समय, साधन और पुरुषार्थ अपेक्षित है। थोड़े-से समय में और विघ्नों से परिपूर्ण जीवन में एक मनुष्य प्रायः सभी विषयों का ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता। जिस विषय का जिस मनुष्य को परिपक्व ज्ञान नहीं होता, उसे उस विषय के विशेषज्ञ (एक्सपर्ट) पर विश्वास रखकर उसके द्वारा सूचित मार्ग से चलना ही पड़ता है। कहना होगा कि ज्ञय की अपेक्षा श्रद्धेय (विश्वास) का क्षेत्र विशाल है।
विश्वास : सफलता का आधार जिस विषय में जिसकी जानकारी नहीं है, उस विषय में उसे किसी प्रतिष्ठित एवं उस विषय के विशेषज्ञ व्यक्ति पर विश्वास करने से ही प्रायः सफलता मिलती है । जैसे-किसी रोगी को नीरोग करने के लिए व्यक्ति किसी यशस्वी और प्रसिद्ध डाक्टर को ढूँढता है और उस पर पूर्ण विश्वास रखकर इलाज कराता है, तो प्रायः सफलता मिलती ही है। इसी प्रकार किसी मुकदमे में पैरवी करने के लिए व्यक्ति किसी वरिष्ठ और होशियार वकील को खोजकर उस पर पूरा भरोसा रखकर उसे अपना मुकदमा सौंप देता है। प्रायः उसमें व्यक्ति को सफलता मिलती है । इसी प्रकार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उस विषय से अनभिज्ञ व्यक्ति को उस विषय के विशेषज्ञ पर पूर्ण विश्वास रखने से उस क्षेत्र में बहुधा सफलता मिलती है ।
कहावत है-'विश्वासः फलदायकः' । विश्वास ही फलदायक होता है। कोई व्यक्ति मंत्र पर विश्वास नहीं करता है, यों ही सूने मन से मंत्रजाप करता जाता है, तो उसे उस मंत्रजाप के पश्चात् सफलता मिलनी कठिन
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