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संकल्पशक्ति के चमत्कार | ६३ दूसरों के अहित के लिए संकल्प किया जाता है, वहाँ वह पापसंकल्पदुष्टसंकल्प है, वह स्वार्थसिद्धि के लिए अधर्माचरणप्रेरित संकल्प है, उस संकल्प का आगे चलकर लोप हो जाता है, उसकी शक्ति मन्द से मन्दतर हो जाती है । जिस प्रकार गोशालक ने तेजोलेश्या का दुरुपयोग किया तो उसकी तेजस्शक्ति लुप्त हो गई, वह स्वयं प्रभावहीन हो गया। अधर्म और पाप पतन की ओर ले जाते हैं, इसलिए संकल्प का प्रयोग अन्याय, अनीति, अधर्म एवं अत्याचार के लिए नहीं होना चाहिए। भारतीय आचार्य शुभ संकल्प की इस उदात्त परम्परा का ध्यान रखते हुए अपने शिष्यों से 'सत्यं वद धर्म चर' इत्यादि सत्संकल्प ही कराते थे। स्नातक बनकर गुरुकुल से विदा होते समय शिष्यों से दीक्षान्त भाषण में वे यही कहते थे
"यान्येवास्माकं सुचरितानि, तान्येव त्वयोपास्यानि, नेतराणि"
'जो हमारे सुचरित हैं, उन्ही की तुम्हें उपासना करनी है, अन्य की नहीं।'
निष्कर्ष यह है कि संकल्प के साथ जीवन की शुद्धता भी जुड़ी हुई है । अतः संकल्प के स्वभाव की इस परम्परा में अपनी उज्ज्वल भावनाओं को ही जोड़ा जाए। निकृष्टता, पाप, अत्याचार, तुच्छ स्वार्थ आदि से प्रेरित संकल्प मनुष्य को आसुरी-राक्षसी बना देते हैं । वैसा अशुभसंकल्प सुन्दर भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता। इसीलिए भारतीय मनीषियों से परमात्मा से प्रार्थना की है
___ 'तन्मे मनः शिव-संकल्पमस्तु' "प्रभो ! हमारा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो।"
सांसारिक या भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति का या किसी को मारने, उच्चाटन करने, ठगने या हानि पहुँचने के अशुभ या दुष्टसंकल्प प्रायः पूर्ण भी नहीं होते, अथवा वे उलटा प्रभाव उसी व्यक्ति पर डालते हैं। ऐसे दुःसंकल्पों के वशीभूत जीवन को विषाद्ग्रस्त बताते हुए दशवैकालिक सूत्र में कहा है
कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए ?
पए-पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ॥ जो साधक कामनाओं (दुःसंकल्पों) का निवारण नहीं कर सकता,
१. दशवकालिक सूत्र अ० २ गा० १
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