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१५० | सद्धा परम दुल्लहा ही उसका चारित्र सम्यक्चारित्र होगा। प्रश्नोत्तर श्रावकाचार में इसी तथ्य को स्पष्ट किया गया है
"दर्शनेन बिना ज्ञानमज्ञानं कथ्यते बुधः ।
चारित्रं च कुचारित्रं, व्रतं पुंसां निरर्थकम् ॥"1 तत्त्वज्ञ पुरुष सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान को कुज्ञान और चारित्र को कुचारित्र कहते हैं, ऐसे व्यक्तियों का व्रत पालन भी निरर्थक है, अर्थात् - मोक्षमार्ग की दिशा में निष्फल-निष्प्रयोजन है ।
निष्कर्ष यह है कि सम्यग्दर्शन ही ज्ञान, चारित्र, व्रत, तपश्चरण, आदि सबका मूलाधार है। सम्यग्दर्शन की पहचान कैसे हो ?
प्रश्न होता है कि किसी विद्वान, तपस्वी, शास्त्रज्ञ, पण्डित, क्रियाकाण्डी, व्रतपालक, या अन्य किसी भी विषय में पारंगत तत्त्वज्ञ, दानी, ध्यानी, मौनी, प्रवक्ता आदि में सम्यग्दर्शन है या नहीं? उसकी दृष्टि सम्यक है या असम्यक् ? उसे सम्यक्त्व प्राप्त है या नहीं ? इसकी परख और पहचान कैसे हो? क्या सम्यग्दृष्टि या सम्यक्त्वी के ललाट पर कोई विशेष तिलक होता है या उसके किसी अंग पर कोई चिन्ह होता है ? अथवा उसके कान में कूण्डल या भुजाओं पर छापा एवं गले में यज्ञोपवीत (जनेऊ) पड़ा होता है, जिससे उसे सम्यक्त्वी या सम्यग्दृष्टि से रूप में जाना-पहचाना जा सके ?
शास्त्रकारों ने सम्यग्दृष्टि या सम्यक्त्वी को पहचान या परख के लिए पांच चिन्ह बताए हैं
___सम (शम एवं श्रम) संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा जौर आस्था
इन पाँचों लक्षणों से किसी व्यक्ति में सम्यग्दर्शन या सम्यक्त्व है या नहीं ? इसकी परख या पहचान की जा सकती है । यदि उक्त व्यक्ति में सम, संवेग आदि पाँचों लक्षण हों तो समझना चाहिए कि वह सम्यग्दृष्टि है। उसकी दृष्टि मोक्षलक्ष्यी है. उसका दर्शन आत्मलक्ष्यी है, उसे सच्चे देव, गुरु और धर्म पर श्रद्धा है, उसे वीतराग-प्ररूपित तत्त्वों पर रुचि है। फिर चाहे
१. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, परिच्छेद ११, श्लोक ४४
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