Book Title: Saddha Param Dullaha
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 330
________________ सम्यग्दृष्टि को परखने का दूसरा चिन्ह : संवेग | १७६ अन्त हो जाता है, साधक मोक्षसुख को प्राप्त कर लेता है । अतः संवेग वृद्धि की प्राथमिक भूमिका में इन तीनों तत्त्वों के प्रति निःस्वार्थ, निश्चल एवं निर्निदान अनुराग रखना अनिवार्य है। संवेग के बाह्य निमित्त यद्यपि मोक्ष की इच्छा भी एक प्रकार की इच्छा है । परन्तु जैसे सूर्य की प्रखर किरणों का प्रकाश होते ही विद्युत् का प्रकाश मन्द पड़ जाता है, वैसे ही जिस अनिदानकृत व्यक्ति के हृदय में मोक्ष की तीव्र इच्छा उत्पन्न होती है, उसके हृदय में फिर अन्य पदार्थों की इच्छाएं मन्द पड़ जाती हैं। मोक्षाभिलाषारूप तीव्र संवेग के पश्चात् अन्य पदार्थों की इच्छाएँ इतनी उग्र नहीं रहतीं कि वे साधक के विवेक को नष्ट कर दें। मोक्ष की इच्छारूप संवेग की उत्पत्ति में बाह्य निमित्त तीन हो सकते हैं-(१) जिनेन्द्रदेव के दर्शन, (२) सद्गुरुओं के चरणों की उपासना और (३) सत्शास्त्रों का सम्यक् श्रवण-मनन । मरुदेवी माता का भगवान् ऋषभदेव के प्रति अत्यन्त अनुराग था । जब से भ० ऋषभदेव ने दीक्षा ली, माता मरुदेवी पुत्र-विरह से व्याकुल रहने लगी थीं। वे भरत चक्री को बार-बार कहतीं- "भरत! तू तो राज्यसुख में लीन हो गया । मेरा लाड़ला ऋषभ न जाने कहाँ-कहाँ वनों में डोल रहा होगा । मुझे उसके पास ले चल ।" भरत महाराज अपनी दादी को बार-बार आश्वासन देते थे। भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान हो गया, यह समाचार जब भरत चक्री ने सुने तो माता मरुदेवी को वे अपने साथ भ० ऋषभदेव के दर्शनार्थ ले गए। मार्ग में माता मरुदेवी ने ऋषभदेव की ऋद्धि के विषय में पूछा तो भरत ने उन्हें बताया कि मेरी ऋद्धि से उनकी ऋद्धि कई गुणी बढ़कर है। जब वे तीर्थंकर ऋषभदेव के समवसरण के निकट पहुँची तो भ० ऋषभदेव का ऐश्वर्य देखकर वे चकित हो गईं। सोचने लगीं-"मैं तो व्यर्थ ही पुत्रमोह के बन्धन में फंसी हुई थी, अब ऋषभ के जब मैंने प्रत्यक्ष दर्शन कर लिये, तब मैं मोहबन्धन में क्यों पडूं ?" इस प्रकार माता मरुदेवी के हृदय में तीव्र संवेग उत्पन्न हुआ। क्रमशः संवेगदशा तीव्रतर होती गई। मोहबन्धन सर्वथा टूट गए । चार घाती-कर्मों का क्षय करके हाथी के हौदे पर बैठे-बैठे उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया। तत्पश्चात् शेष कर्मों का भी क्षय करके वे मोक्ष में पहुचीं। यह था--जिनेन्द्रदर्शन से संवेग की उत्पत्ति का प्रथम बाह्य हेतु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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