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सफलता का मूलमंत्र : विश्वास | २३
दूसरी बात, धर्म का आचरण तो स्वेच्छा से होता है, वह किसी पर दबाव नहीं डालता न किसी के सुख को लूटता है, बल्कि आत्मिक, स्वाधीन एवं शाश्वत सुख की ओर व्यक्ति के जीवन को ले जाता है।
देवाधिदेवों पर अविश्वास का कारण नहीं जैनधर्म में अरिहन्तों और सिद्धों को देवकोटि में माना गया है । ये दोनों देवाधिदेव, वीतराग, सर्वज्ञ, परमात्मा हैं, भगवान् हैं । यद्यपि सिद्ध परमात्मा तो मोक्ष में पहुँचने के वाद निरंजन निराकार होने के कारण संसार से बिल्कुल अलिप्त हो जाते हैं । वे संसार के लोगों को सुख-दुःख कुछ भी देते नहीं, न ही उपदेश देते हैं। देहधारी वीतराग पुरुष सर्वज्ञ तीर्थंकर होते हैं। वे राग-द्वेष से रहित हैं। अज्ञानादि १२ दोषों से सर्वथा रहित हैं। कई लोग अपने स्वकृत अशुभ कर्मों के कारण दुःख, संकट, विपत्ति में फँस जाते हैं, तब इन दोनों प्रकार के परमात्माओं पर अविश्वास लाकर इन्हें कोसने लगते हैं । कहने लगते हैं, इनमें क्या रखा है ? हम इन्हें मानकर क्यों अपने आपको संकट में डालें ?
कई लोग तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपरूप धर्म के या श्रुत-चारित्ररूप धर्म के उपदेश को असत्य, नरकादि का डर एवं स्वर्ग का प्रलोभन देने वाला, अत्यन्त कठोर, कष्टकर बताते हैं, और कहने लगते हैं हमें महावीर आदि तीर्थंकरों पर विश्वास नहीं है, कोई समस्त कर्मों को क्षय करके सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो सकता है, यह भी असम्भव जैसी बात है । हमें विश्वास नहीं है क्योंकि अरिहन्त या सिद्ध, कोई भी भगवान् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी या अनन्तशक्तिमान होता तो हमें पापकर्मों से छुड़ाने, संकट से बचाने जरूर आता । आज तक हमने या हमारे बाप-दादों ने कोई भी ऐसा भगवान् (अरिहन्त या सिद्ध) देखा नहीं है। अतः हम उन्हें नहीं मानते । इस प्रकार देवाधिदेव तत्त्व पर भी कई लोगों को घोर अविश्वास
परन्तु वे यह नहीं सोचते कि सिद्ध भगवान् जो कि संसार के जन्ममरण के चक्कर से सर्वथा मुक्त हैं, कर्मों और दुःखों से भी सर्वथा रहित हैं, वे वापस संसार के पचड़े में पड़ने क्यों आएँगे ? अब रहे अरिहन्त परमात्मा, वे भी राग-द्वेष से मुक्त हैं, किसी व्यक्ति को वे कष्ट, दुःख या संकट में डालना क्यों चाहेंगे ? क्या उन्हें सांसारिक लोगों के भयंकर, कुकृत्यों, गुनाहों, अपराधों आदि को देखकर उनसे द्वेष या घृणा जैसा कोई भाव आ सकता है ? कदापि नहीं । उन्हें हमें असत्य उपदेश देने या नरकादि का भय बताने से क्या प्रयोजन था ? जो राग, द्वष, अज्ञान या मोह से ग्रस्त व्यक्ति हो,
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