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१०४ | सद्धा परम दुल्लहा (४) आठ प्रकार के मदों से बचो
सम्यक् श्रद्धा की सुरक्षा के लिए आठ प्रकार के मदों (अहंकारों) से बचना भी आवश्यक है। ये मद अहंकार को बढ़ाकर मनुष्य को हिंसादि पापों में प्रवृत्त करने के कारण बन जाते हैं। मद से ग्रस्त व्यक्ति सत्य (सम्यक् वस्तु स्वरूप) को समझ नहीं पाता । वह अहंग्रस्त होकर अपने में किसी भी मद को स्थान देता है तो वह अपनी सम्यक श्रद्धा को लांछित, दूषित या कलंकित करता है। आठ मद इस प्रकार हैं
(१-२) जातिमद और कुलमद-सम्यक्त्वी यदि अपने जाति और कुल का मद (गर्व) करता है तो शाश्वत आत्मा का पुजारी न होकर अनित्य नाशवान शरीर का पूजारी होता है। सम्यक्त्व का जाति और कुल से कोई सम्बन्ध नहीं है। किसी भी जाति या कुल का व्यक्ति सम्यग्दृष्टि, धर्मात्मा, साधु या साध्वी बन सकता है, रत्नत्रयसाधना करके माक्ष प्राप्त कर सकता है। सम्यग्दष्टिसम्पन्न चाण्डाल भी देवों का पूज्य हो सकता है। इसलिए जाति-कूल का अहंकार अपने धार्मिकों के अपमान का कारण बनता है । जाति आदि आठ मदों से ग्रस्त नीचगोत्र का बन्ध कर लेता है। ऐसा मदग्रस्त व्यक्ति जैन सिद्धान्त के प्रति अनास्थावान एवं अज्ञ होता है। अतः सम्यक्त्व की सुरक्षा के लिए इन दोनों मदों का त्याग आवश्यक है।
(३) बलमद-सम्यक् श्रद्धावान् के लिए शक्ति का अहंकार भी घातक है । सिंह, असुर, बर्बर आदि हिंस्र प्राणी मनुष्य से बल में बढ़कर हैं। उनके बल के आगे मनुष्य का बल टिक नहीं सकता। धन, बुद्धि आदि का बल भी अहंकारवश दूसरों को ठगने, अन्याय-अत्याचार हिंसा आदि घोर पापकर्म करने में प्रायः लगता है। शक्ति का दुरुपयोग करने वाला सम्यग्दृष्टि अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है। अपनी आत्मशक्ति के प्रति उसको श्रद्धा खत्म हो जाती है, प्रायः वह आत्मविकास को भी खो बैठता है। अतः बलमद से भी सम्यग्दृष्टि को बचना चाहिए।
(४) रूपमद-सम्यक्त्व के लिए बाधक बनता है। रूप का गर्ब मनुष्य को आसक्ति, मोह, विषयवासना की ओर भटकाता है, वह अनेक जन्मों तक संसार-परिभ्रमण करता रहता है। फिर रूप तो नश्वर है, अस्थिर है, उसका गर्व कैसा? सम्यग्दृष्टि सदैव रूपमद से दूर रहता है, उसकी दृष्टि सदैव आत्मिक सौन्दर्य पर टिकी रहती है।
(५) तपोमद-तप का गर्व भी मनु य को नीचे गिराता है । केवल
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