Book Title: Rupsen Rajkumar Kurmaputra Charitra
Author(s): Anupram Sadashiv Sharma, Dharmtilakvijay, 
Publisher: Smruti Mandir Prakashan Ahmedabad

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Page 9
________________ 2828282828282828282828288 परमोच्चशिखरमस्प्राक्षीत् भवनिर्वेदस्य विपाकरुपेण स शुभाध्यवसाय स्रोतसि चेतांसि भावयन् घातिकर्माणि ददाह, केवलालोकमाविर्भावयतिस्म। तद् द्वारा च स्वस्याऽत्मन: प्रत्येकमपि प्रदेशमनन्तप्रकाशौघेनोज्ज्वलयति स्म, अनन्तसौख्येनान्दोलयति स्म, अव्याबाधसामर्थ्येनाऽमृत्युं गमयति स्म भवनिर्वेदोऽस्त्यस्य चरितस्य ध्वनितार्थः । ___ एवं ग्रन्थयुतिमती प्रतिरियम्, संपादिता च सा बहुलधामभिर्मुनिमतगजैर्धर्मतिलकविजयमहाराजैः, एषा प्रतिर्भागधेयानां विषयाऽभिलाषं विनाशयती भवनिर्वेदञ्चोत्स्फारयती जगति यावच्चन्द्रदिवापती नन्दतादिति कामये । - हितवर्धनविजयोऽमुनिः चैत्रशुक्ला प्रतिपदा - २०६०. सूर्यपुरी (सुरत) 282828282828282828282828 ॥ ८ ॥ For Personal Private Use Only H isinelibrary.org

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