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- जेठ सुदी २ दोपहर को मूलनायक के देरासर (मन्दिर) में. सव भगवान को अठारह अभिषेक की क्रिया शुद्ध विधि विधान से हुई थी। उसके बाद सामको ४ बजे जलयात्रा का वरघोड़ा (जुलूस), भारे दव वापूर्वक निकल था।
जेठ सुदी ३ विजय मूहुर्त में गौमुख यक्ष, चक्रेश्वरी देवी । द्वारपाल तथा सरस्वतीदेवी की इस प्रकार चार प्रतिमाओं की प्रतिष्टा । भिन्न भिन्न पुण्यशालीयों ने हजारों की उछामणी करके प्रतिष्ठित की।
उसके बाद तुरंत ही अष्टोतरी स्नात्र का का प्रारंभ हुआ । सामको ५ बजे तमाम सार्मिक का स्वामी वात्सल्य हुआ था । ।
यहां ३० वर्ष के वाद अष्टोतरी होने से तमाम भाविकों का उत्साह अमाप था । - महोत्सव में रोहिडा, वांकली मांडाणी, आबूरोड, जयपुर अजमेर सिरोही जावाल इन्दोर सिटी, बम्बई अहमदावाद धंधुका धोलका आदि अनेक गाँवों से भाविक यहां आये थे ।
महोत्सव योजक पुखराजजी भंडारी तथा मगनलालजी कोठारी अपने भरपूर कुटुम्ब के साथ यहां आके आठ दिन रुके थे।
. उनने भक्ति का लाभ इतना अच्छा लिया था कि सब उनकी. प्रशंसा करते थे।
यहां के मेनेजर भगवतीलालजी ने रातदिन देखे विना तन मन. धनसे जो सेवाकी है उसके बदले उनको खूब धन्यवाद घटता है। पूजा भावना के लिये वडगाँव से प्रसिद्ध संगीतकार मंडली के साथः आये थे।
आचार्य श्री अपने परिवार के साथ यहां से जेठ सुद ८ को मांडाणी तरफ विहार करते समय तमाम भाविक विदा देने आये थे। .
जेठ वदी ६ को मांडाणी प्रवेश करने की भावनाथी । इस तरह पूज्य आचार्य श्री सपरिवार गुजरात से राजस्थान में पधारने पर अनेक. विध शासन प्रभावना के कार्य होने लगे हैं ।