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प्राकृत भाषा एवं साहित्य छुभिस्सामि, एगं भागं अंतेउरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेण महद महालयं कूडागारसालं करिस्सामि । ____ आगम के इन ग्रन्थों में प्राकृत गद्य में छोटे-छोटे वाक्यों का भी प्रयोग हुआ है। उनके साथ उपमाएँ भी जुड़ी हुई हैं। जम्बद्वीपपण्णति में ऋषभ के मुनि-जीवन का वर्णन कई उपमाओं के साथ किया गया है। यथा
कुम्मो इव इंदिएसु गत्ते, जच्चकंचणगं व जायरूवे, पोक्खरपत्तव निरूवलेवे, चन्दो इव सोमभावयाए, सूरी व दित्ततेए, अचले जह मंदरे गिरिवरे ।
आगम के व्याख्या साहित्य में भी प्राकृत गद्य का प्रयोग हुआ है। चूर्णि एवं भाष्य साहित्य में प्राकृत गद्य के कई सुन्दर नमूने हैं। उत्तराध्ययनचूणि दशवैकालिकचूणि एवं आवश्यकचूणि में कई प्राकृत कथायें आयी हैं, जो गद्य में हैं। इनमें कथोपकथन शैली का भी प्रयोग है। निशीथचूर्णि का एक संवाद दर्शनीय है
तेण पुच्छित्ता-कि ण गतासि भिक्खाए ? सा भण्णति-अज्ज ! खमण मे । सो भणति-कि नमित्त ? सा भणति-मोहतिगिच्छं करोम।
अर्धमागधी आगमों के अतिरिक्त शौरसेनी आगम ग्रन्थों में भी कहींकहीं गद्य का प्रयोग मिलता है। किन्तु अधिकांश ग्रंथ पद्य में लिखे गये हैं। "षट्खंडागम" की टीका "धवला" में ग्रन्थकार के परिचय के सम्बन्ध में कहा गया है
तेण वि सोरट्ठ-विसय-गिरि-णयर पट्टाणचंदगुहाठिएण अठंगमहाणिमित्तपारएण गंथवोच्छेदो होहदि रित जादभएण पवयण-वच्छलेण दक्खिणावहाइरियाणं महिमाए मिलियाणं लेहो पेसिदो।
इस तरह प्राकृत के काव्य ग्रन्थों के गद्य की शैली को समझने के लिए प्राकृत आगम ग्रंथो के गद्य का अध्ययन किया जाना आवश्यक है। इसमें भारतीय प्राचीन गद्य-शैली के विकास के कई बीज सुरक्षित हैं। १. प्राकृत कथा साहित्य :
प्राकृत साहित्य में सबसे अधिक कथा-ग्रन्थ लिखे गये हैं। कथाओं की शैली और विविध रूपता के लिए प्राकृत साहित्य प्रसिद्ध हैं । आगम काल
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