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'रिम- स्वीकार करते हो तो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार 'पंच उत्तरासाढे अभीई छठे होत्था' से ऋषभदेव का राज्याभिषेक नामक | उपोद्घाता विशुद्धि कल्याणक भी मानना चाहिए । ५. शाखों में तथा किसी भी आचार्य द्वारा इसका उल्लेख न होने से यह प्रतिपादन अशास्त्रीय है,
वीरपटटीकाइयो- | अतः उत्सूत्रप्ररूपणा है और इसका प्रतिपादन सर्वप्रथम जिनवल्लभ गणिने ही किया है।
कल्याणक हा इन विकल्पों का समाधान (उत्तर) क्रमशः इस प्रकार है:
१. यदि हम आश्चर्य को कल्याणक के रूप में स्वीकार न करें तो हमारे सन्मुख कई बाधाएँ उपस्थित होती है । शास्त्रों में ॥१८॥
जहां दश आश्रयों (अच्छे)मा वर्णन है, पर में ११हीतर पहियार का स्त्री रूप में होना भी एक आश्चर्य माना गया है। यदि नारी का तीर्थकर होना आर्य के अंतर्गत आता है तो सहज ही प्रश्न उठते हैं कि क्या उस नारी का तीर्थकरत्व मंगल. दायक हो सकता है ? क्या उस नारी के जीवन की अमूल्य घटनाएं कल्याणक के रूप में स्वीकार की जा सकती हैं ? क्या उसकी तीर्थकर उपाधि कल्याणकारक हो सकती है ? क्या उसका शासन चतुर्विध संघ के लिये कल्याण-कारक हो सकता है । यदि भगवान महावीर का गर्भापहरण कल्याणकस्वरूप नहीं हो सकता वो नारी का तीर्थकरत्व कैसे कल्याणस्वरूप हो सकता है।
इसी प्रकार दूसरा एक आश्चर्य उत्कृष्ट वेहधारी १०८ मुनियों के साथ भगवान ऋषभदेव का सिद्धिगमन (निर्वाण प्राप्त करना) है। ५०० धनुष परिमाण की देह उत्कृष्टदेह मानी जाती है । इस प्रकार के उत्कृष्ट देहधारी जीव एक समय में एक साथ दो ही मुक्ति जा सकते हैं, यह शास्त्रीय नियम है। दो से अधिक एक समय में मुक्ति नहीं जा सकते, इस शास्त्रीय मर्यादा का उलंघन होने से इसे आश्चर्य मानते हैं वो, क्या हम इसको आश्चर्य मानकर मंगलदायक कल्याणक स्वीकार नहीं कर सकते १ यदि
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