Book Title: Pindvishuddhi Prakaranam
Author(s): Udaysinhsuri, Buddhisagar
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar
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द्वितीयो.
पिण्डविशुद्धि टीकाद्वयोपेतम्
स्पादना
दोषवार्य धात्रीदोषनिरूपणम्।
क्षीरं दास्यामीति । एवं मजन मण्डनादिष्वपि धात्रीत्वकरणकारणद्वारेण यत्पिण्डं 'लभते' प्राप्नोति 'यतिस्तथाविधसाधुः धाईपिंडोत्ति धात्रीत्वकरणालन्धः पिण्डो मध्यमपदलोपात् यात्रीपिण्ड इत्युच्यत इति शेषः । 'सोति सः अनन्तरोक्तः । अंत्रच भूयांसा दोषाः, यथा-मद्रकत्वाद्वालकजननी अशुचिभिक्षा दद्यात्प्रान्तत्त्वात्प्रद्वेष वा कुर्याद, कर्मोदयाद्वालकस्य | ग्लानत्वे सत्युड्डाहश्च भवेत, चाटुकारिण इति जनेऽवर्णवादश्च स्यात् , स्वजना अन्ये वा सम्बन्ध वा शङ्करनित्यादि । उदाहरणं चात्र
इहेच जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कोल्लयरं नाम नया होत्या, तत्थ य जंघाचलपरिहीणा संगमधेरामिडाणा गुणरयणनिहिणो सूरिणो परिवसंति | अन्नयाय संपत्ते कक्खडे दुभिक्खकाले संगमधेरायरिएहिं अणुनायनियगच्छपरिवुडो सीहाभिहाणसीसो पहाविओ सुभिक्खदेसंतरं, आयरिया वि महाणुभागा मासकप्पेण बिहरिउमसमत्था “जा जयमाणस्स भवे, विराहणा मुत्तविहिसमग्गस्स | सा होइ निजरफला, +अज्झत्थविसोहिजुत्तस्स ॥१।। "त्ति सुत्तमणुसरिऊणं तं खित्वं नवविमागे काऊण चउबिहाए दवखेत्तकालभाचरुवाए जयणाए जयमाणा तस्थेव विहरिंसु, तत्थ दवओ पीढफलमाइसु, खेत्तओ वसहिपाडएसु, कालओ एगस्थ पाडए मासं बसिऊणं वीयमासे अन्नत्थ वसहिं गवेसिउँ- वसंति, भावओ सवस्थ निम्ममत्ता विहरति । इओ य अन्नया कयाह आयरियपउनिगवेसणानिमिसं पट्टविओ सीहेण दत्ताभिहाणसीसो । पत्तो य तं नयरं। तो आयरिया नीयवासिणो त्ति काऊण ठिओ तप्पडिस्सयाओ बाहि, वंदिया य किंपि सूरिणो, भिक्खासमए + “ अध्यात्मविशुद्धियुक्तस्य " (पर्यायः अ०)x“ गवेसिय" य.। * नित्यवासिन इति कृत्वा ( पर्यायः अ०)।
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