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पिन-
कायो
पेवर
SAKAL
आदि परित्रानुसार, यहां भी कल्याणक शब्द का उल्लेख न होने से क्या हम उनके मी कल्याणक स्वीकार नहीं करेंगे ? नहीं, उपोदपाव.. हमें स्वीकार करना होगा। अन्यथा कल्याणकों का ही स्पष्टतः अत्यन्ताभाव हो जायगा, जो सचमुच में शास्त्रविरुद्ध प्रलापमात्र वीरगचहोगा, कल्याणकों का प्रभाव अर्थात् मङ्गलदायक वस्तुओं का अभाव होगा। कस्याणकों का अभाव होने से इन्द्रादिक देवताओं की विहारकी हुई श्रद्धापूर्वक सम्यग् आराधना केवल ढोंग मात्र ही होगी, भक्ति नहीं। अतः कल्याणक शब्द का उल्लेख न होने पर भी कल्याणक हमें लक्षणा से कल्याणक प्रहण करना ही होगा ।
सिदि। यही नहीं, किन्तु तीर्थकर का जीव पूर्वमयों में जिस भय से पह सम्यक्त्व अर्जन करता है वहां से लेकर तीर्थकर मव तक उसके सभी भव ' उत्तममय ' माने जाते हैं। कल्पसूत्रादि शास्त्रों में प्रभु महावीर का मव पोट्टिल राजपुत्र के भव से पंचम भव माना जाता है, परन्तु समवायानसूत्र में गणधरदेव महावीर का पंचम भव देवानन्दा की कुक्षि में उत्पन्न होना और छठ्ठा मब त्रिशलारानी की कुक्षि में उत्पन्न होना और तीर्थकर रूप से जन्म लेगा मानसे है
समणे भगवं महाबीरे वित्यगरभवग्गणाओ छठे पोट्टिलमपरगणे एगं वासको सामन परियाग पाणिसा सहस्सारे कृप्ये सबढविमाणे देवताए सक्वने।" ... अमष तपस्वी भगवान महावीर के पोट्टिल के मप से पांच ही अब माने गये, यह छा भव कैसा- इसका श्रम न हो
इसलिये टीकाकार अभयदेवरि स्पष्ट कर देते हैं।ATM णे मावि । सिता भगवान् पोट्टिलाभियानो राजपुत्रो प्रभूषः। अत्र वर्षकोटि प्रषण्या पालिवान को MAASI