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PRASANGRAHA
NOTEKASINIK
(2) तपागच्छीय श्रीशान्तिचन्द्रगणि अम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति की टीका करते हुए भगवान ऋषमप्रभु का राज्याभिषेक कल्याणक माना
जा सकता है या नहीं? प्रसंग पर लिखते हैं:-"वीरस्य गर्भापहार इव नायं कल्याणकः।" अर्थात् वीर के गीपहार
की तरह यह (ऋषभ का राज्याभिषेक) कल्याणक नहीं है। इससे स्पष्ट है कि गीपहार कल्याणको की परिधि में है। (त) भागमिकगच्छीय आचार्य जयतिलकसूरि स्वप्रणीत सुलसाचरित्र के छठे सर्ग में लिखते हैं:
"देवानन्दोदरे श्रीमान , श्वेतषष्ठयां सदा शुचिः। अवतीणोऽसि मासस्या-पाढस्य शुचिता ततः ॥१॥ त्रिशला सर्वसिद्धेच्छा, प्रयोदश्यामभूद् यतः। तवावताराचेनैषा, सर्वसिद्धा प्रयोदशी ॥ २॥ शुकुत्रयोदश्यां यथा-चलमेरुं प्रचालयन् । चित्रं कृतवास्तव्योगा-चैत्रमासोऽपि कथ्यते ॥ ३ ॥ यस्याद्यदशम्या दुर्ग-मोक्षमार्गस्य शीर्षकम् । चारित्रमादृतं युक्ता, मासोऽस्य मार्गशीर्षता ॥४॥ दशम्यां यस्य शुक्लायां, केवलश्रीरहो! त्वया। बादत्ता तेन मासोऽस्य, युक्ता माधवता प्रभो! ॥ ५ ॥ -- तब निर्वाणकल्याणं, यद्दिनं पावयिष्यति । तन्न वेमि यतो नाथ !, मादृशोऽध्यक्षवेदिनः ॥६॥
सिद्धार्थराजायज । देवराज!, कल्याणकैः षभिरिति स्तुतस्त्वम् ।
तथाविधेशान्तरवैरिषदकं, यथा जयाम्पाशु तव प्रसादात् ॥७॥". # इत्यादि एक नहीं सैकड़ों प्रमाण दिये जा सकते हैं। अतः यह कहना भी युक्तिसंगत नहीं है कि जिनबल्लभगणि ने ही का यह नूतन प्रतिपादन किया है। श्रीमान् जिनववभगणि ने तो केवल जो वस्तु चैत्यवासियों के कारण विवर' में प्रविष्ट होती
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