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BIHARITRAKARICHE
इसमें तेरह तीर्थंकरों के पांच पांच कल्याणक एक एक नक्षत्र में होने से कुल मिलाकर ६५ होते हैं और उसमें महावीर के हैं। गर्भहरणसहित केवलज्ञान प्राप्ति तक ५ कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में हुए, स्वीकार कर ७० की संख्या पूर्ण करते हैं। इसमें निर्वाण सम्मिलित नहीं हैं। क्या यहाँ निर्वाण को कल्याणक न माना जाय ? और उसे यदि मानते हैं तो ६ हो ही जाते हैं इसीलिये आचार्य अभयदेवसूरि को विशिष्ट रूप से लिखना पड़ा कि ' निर्वृतिस्तु स्वातिनक्षत्रे कार्तिकाऽमावस्यायाम् ' इति । अतः यह स्पष्ट है कि शास्त्रकारों ने गर्भहरण को कल्याणक के रूप में स्वीकार किया है। यदि गर्मपरिवर्तन अतिनिन्द्य और अशुभ होता तो इसे मङ्गलमय कल्याणकों की गणना में ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं थी । इसमें ग्रहण करना सूचित करता [ है कि गर्भपरिवर्तन भी मङ्गलस्वरूप कल्याणक है।
यहां पर यदि यह विचार किया जाय कि इसमें कहीं भी कल्याणक शब्द की गन्ध तक हमें प्राप्त नहीं होती अपितु इसमें केवल इतना ही कहा गया है कि इस नक्षत्र में ये वस्तुएं हुई, तो इसे कल्याणक के रूप में कैसे स्वीकार किया जाय ? यह केवल मतिविभ्रम है, विद्वत्तापूर्ण विचार नहीं। यहां पर वस्तु ही कल्याणक का पर्यायवाची शब्द है, इसीसे कल्याणक ग्रहण किया जाता है। इस एकार्थक को हम यदि स्वीकार न करें तो हमारे सामने अनेक प्रकार की विप्रतिपत्तिएं खड़ी हो जायेगी। कुछ स्थलों को छोड़कर हमें कहीं भी और किसी भी शास्त्र में कल्याणक शब्द पृथक रूप से प्राप्त नहीं होता, हमें केवल लक्षणा से ही ग्रहण करना होता है। ऐसी अवस्था में क्या हम च्यवन से निर्वाण पदप्राप्ति पर्यन्त की वस्तुओं को कल्याणक स्वीकार नहीं करेंगे ? स्थानाङ्गसूत्र में प्रतिपादित १४ वीर्थङ्करों के ७० कल्याणकों को अंगीकार नहीं करेंगे ? कल्पसूत्र पार्श्वनाथ, नेमिनाथ