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नेत्रोंवाला
एकपोसमो संधि लें। उन्होंने समुद्रावर्त और वजावतं धनुषोंको होरीपर चढ़ाकर प्राम्यधनुषोंकी भाँति ले लिया। देवसमूहने पुष्पवृष्टि की। रामने जनकपुत्रीसे विवाह कर लिया। जो-जो राजा वहाँ सम्मिलित हुए थे वे दुःखी होकर अपने-अपने नगर चले गये। दिवस, वार और नक्षत्र गिनकर, लग्न योग और ग्रहोंकी दुस्थितिको देखकर, ज्योतिषियोंने आदेश किया कि इस कन्याके कारण हर्ष सहित राम-लक्ष्मणकी जय होगी और अनेक राक्षसोंका विनाश होगा ॥१-९||
[१४] शशिवर्तन राजा चन्द्रमुखी, कुवलय के समान लम्वे नेत्रोंवाली, सुन्दर कोयल के समान वाणीवाली कन्याएँ ले पाया। उनमें से दस छोटे भाइयों को दे दी गयीं और आठ लक्ष्मणके लिए | राजा द्रोणने विशल्या सुन्दरी मनोहर कन्या लक्ष्मणको संकल्पित की। चैदेहीको अयोध्या नगरी ले जाया गया। दशरथने रथ्या, त्रिपथ और चतुष्पथों, केशर और कपूर से महान और श्रेष्ठ चर्चरियों दिये जाते हुए चन्दनके छिड़काबों, गाये जाते हुए गायन गीतोंके द्वारा महोत्सव-शोभा की। मणिमय देहलीकी रचना की गयी । मोतियोंकी कनक ( चूरीसे) राँगोली की गयी । सुरवरोंके मनोंको चुरानेवाले स्वर्णदण्ड और मणिमय तोरण बाँध दिये गये। जिनकी जय-जय की जा रही है ऐसे सीता और रामचन्द्रको नगरमें प्रवेश कराया गया। रतिसुखको भोगते हुए वे दोनों अयोध्यामें अविचल रूपसे स्थित थे । ।।१-१०॥
से इस
गाने विशल्या
या भगरी
कपूर
बाईसवी सन्धि अपने घर आकर दशरथके पुत्र रामने असाढ़की अष्टमीके दिन पत्नीके साथ जिनेन्द्रका स्नानाभिषेक किया।