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एकवीसमो संधि
सेनाका शरीर चूर-चूर करनेवाले दशरथ-पुत्र रामको कन्या दे दी हैं ।" उस अवसरपर, जिसका अभिमान बढ़ रहा है ऐसे चन्द्रगति राजाने राजा जनकसे कहा - "कहाँ विद्याधर और कहाँ मनुष्य ? गज और मशक में बहुत अन्तर होता है । मनुष्यक्षेत्र के लोग कनिष्ठ होते हैं, वहाँ जीवन भी कहाँका विशिष्ट होता है ?" राजा जनक कहता है कि "विश्व में कहीं भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं, जो मनुष्य क्षेत्रसे श्रेष्ठ हो, कि जिसके पास तीर्थकरोंने सिद्धत्व और केवलज्ञान प्राप्त किया है ?" ॥१-२॥
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[१२] यह सुनकर विधाके बल और माहात्म्यबाले भामण्डल के पिता ने कहा - "लम्बी प्रत्यंचावाले, अत्यन्त दुर्जेयभाववाले दो धनुष इस नगर में हैं, वस्त्रावर्त और समुद्रावर्त; जिनके शरीर यक्ष और राक्षसोंसे सुरक्षित हैं । भामण्डलसे क्या ? और रामसे क्या ? उन्हें जो आयाम के साथ चढ़ा देता है, वही इस कही गयी कन्यासे परिणय कर ले।" राजाके उसी कथनको प्रमाण मानकर वे धनुषों सहित मिथिला नगर गये । मंच बना दिये गये और स्वयंवर प्रारम्भ किया गया । विश्वके जितने नामी-गिरामी राजा इकट्ठे हुए वे सब धनुष प्रतापसे अपमानित हो गये । वहाँ कोई भी नहीं था जो उन धनुषों को चढ़ा सकता और हजारों यक्षोंके लिए मुँह दिखा सकता । जबतक वे धनुष गुणों (डोरी और गुणों) पर नहीं चढ़ते तबतक किसके लिए शुभदर्शन हो सकते हैं ? वे धनुष कुकलत्र की तरह अवश्य ही जनके लिए अनिष्ट होंगे ॥१-२९॥
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[१३] जब समस्त राजा अपमानित हो गये तो दशरथके चारों पुत्रोंको बुलाया गया। बलदेव और वासुदेव वहाँ पहुँचे जहाँ सीता देवीका स्वयंवर मण्डप था। जिन्होंने लाखों नरवरोंको दूरसे हटा दिया है ऐसे यक्षोंने धनुष अर्पित कर दिये कि अपने-अपने प्रमाणके अनुसार श्रेष्ठ धनुषों को चुनकर ले