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ओसवाल जाति की उत्पत्ति
पड़िहार - पड़िहारों के विषय में हम ऊपर काफ़ी प्रकाश डाल चुके हैं। उस समय में गाने संवत् २२२ में यह जाति भी प्रकट नहीं हुई थी ।
माटी - इस जाति का प्रमाणिक इतिहास संवत् १२०० के करीब से प्रकाश में आता है। इसके पूर्व इसका अस्तित्व नहीं था हां, इतना अवश्य है कि जैसलमेर के दीवान मेहता अजित सिंहजी ने अपने भट्टीनामें में इनकी उत्पत्ति का समय संवत् ३३६ के पश्चात् लाहौर के राजा भट्टी की संतानों से होना लिखा है । मगर यह बात उस समय तक सच नहीं मानी जा सकती जब तक कि उस समय का कोई शिलालेख प्राप्त न हो जाय । खैर इस संवत् से भी भाटी जाति का उत्पन्न होना संवत २२२ के पश्चात् ही सिद्ध होता है ।
मोयल - मोयल जाति कोई स्वतंत्र जाति नहीं है यह चौहानों की एक शाखा है। इसका संवत् १५०० तक लाडनू नामक स्थान पर राज्य करना पाया जाता है ।
गोयल - गोयल जाति भी स्वतंत्र जाति न हो कर गहलोतों की एक शाखा है। इसकी उत्पत्ति बाप्पा रावल से हुई है। यह इतिहास प्रसिद्ध बात है कि बाप्पा रावल ने संवत् ७७० के पश्चात् मानराज मोरी से चित्तौड़ का राज्य लिया था । इन गोयलों का राज्य मारवाद के इलाके में था, जिसे कन्नौज से भाकर राठौड़ों ने छीन लिया ।
दहिया - इस जाति का राज्य चौहानों से पूर्व संवत् १२०० के करीब जालोर में था । ये परमारों के नौकर या आश्रित थे ।
हुए,
मकवाना —यह शाखा परमारों की कही जाती है। ये लोग कभी इतने मशहूर नहीं
कि इनके पूर्व होने वाली इनकी छोटी शाखा “शाला" के लोग रहे ।
जितनी
कछवाहा - इस जाति का संवत् ११०० के पश्चात् गवालियर में राज करना पाया जाता है। इसका कारण यह है कि इनके समय का एक शिलालेख संवत् ११५० का ख़ुदा हुआ गवालियर के किले में मौजूद है। इसमें राजा महिपाल के पूर्व आठ पुश्तें लिखी हुई हैं । प्रत्येक पुश्त यदि २५ वर्ष की मानली जाय तो करीब २०० वर्ष पूर्व अर्थात् संवत् ८५० तक उनका वहाँ रहना सम्भव हो सकता है। इसके पूर्व का कोई शिला लेख नहीं मिलता । अतएव इस जाति के विषय में भी मानना पड़ेगा कि यह भी संवत् २२२ . में ओसियां में ओसवाल नहीं हुई ।
गौड़- इ- इस जाति का पता बंगाल में लगता है और वहीं से इसका राजपूताने में आना दिल्लीपति महाराज पृथ्वीराज के समय में माना जाता है। इसके पूर्व इस जाति के मारवाड़ में होने का कोई सबूत नहीं मिला । अतपुच यह जाति भी संवत् १२२ में थोसवाल कैसे हुई, समझ में नहीं आता ।
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