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बांसवान नाति का इतिहास
एक हजार के करीब से अनुमान किया जाता है। क्योंकि इस संवत् के साथ पहले विक्रम का नाम नहीं लगाया जाता था, जैसा कि पबिहारों के दोनों लेखों में नही है। भाबू पर्वत पर जो लेख वस्तुपाक और भचलेश्वरजी के मन्दिरों में है उनमें धूमराज को पंवारों का मूल पुरुष लिखा है और उसकी उत्पत्ति वशिष्ठजी के अग्निकुंड से बतलाई है। यह मराज उत्पलराज से पहले था। क्योंकि उत्पलराज को उसके सामदान में लिखा है। इससे स्पट पता चलता है कि संवत २२२ में पंवारों का भस्तित्व न था।
सिसोदिया-यह गहलोतों की एक शाखा है जो रावल समरसिंहजी के पौत्र राणा राहप के गाँव सिसोद से मशहूर हुई है । रावल समरसिंहजी के समय का एक शिलालेख संवत १३४२ का खुदा हुआ आबू पहाड़ पर है। इससे पता चलता है कि सिसोदिया जाति की उत्पत्ति भी संवत १३४२ के पीछे हुई । संवत २२२ में यह लोग भी नहीं थे।
राठौड़- राठौड़ों के विषय में यह लिखा जा सकता है कि संवत १००० के करीब मारवाड़ के इथुण्डिया नामक ग्राम में ये लोग बसते थे उनको बीजापुर के संवत ९९६ और संवत १९५३ के लेख में राष्ट्रकूट और हस्तिकुंडी नगरी का मालिक लिखा है। ये राष्ट्रकूट शायद दक्षिण से भाये थे ।क्योंकि वहां इनके बहुत से लेख मिले हैं। मगर उनमें कोई भी लेख संवत् ९.. पूर्व का नहीं है। इनके इधर आने का समय संवत् .०० के पीछे मालूम होता है। यहाँ आकर पहले ये हथुडी नामक नगरी में, जो कि इस समय भरवली पर्वत के नीचे बीरान पड़ी है, बसे थे।
___ सोलंकी-राष्ट्रकूटों के पश्चात् सोलंकियों का नम्वर आता है। ये लोग पहले दक्षिण में रहते थे और चालुक्यवंश के नाम से प्रसिद्ध थे । दक्षिण में इनके कई शिलालेख मिलते हैं, मगर उनमें से कोई भी शिलालेख संवत् ६८ के पूर्व का नहीं है। इनकी विशेष प्रसिद्धि संवत् १००० के पश्चात् , अब कि मूल राज सोलंकी गुजरात में राज्य करने लगा, हुई । इससे पता चलता है कि ये लोग भी राष्ट्रकूटों के ही समकालीन थे । अतएव संवत् २२२ में इनके अस्तित्व का होना भी निराधार है।
___चौहान-सोलंकियों ही की तरह चौहानों के लेख भी संवत् १००० के पूर्व के महीं मिले हैं, अतएव उस समय चौहानों का होना भी विश्वसनीय नहीं माना जा सकता।
सांखला- यह परमारों की एक पिछली शाखा है । मुहता नेणसी ने धरणीवराह के पुत्र बाघ की भौलाद से इस शाखा की उत्पत्ति लिखी है। अगर यह धरणीवराह वही है जिसका कि नाम बीजापुर के लेख में पाया जाता है तो उसका समय संवत् १०५० के करीब और उसके पौत्र का संवत् ११०० के करीब होना चाहिये । सांखलों का राज्य संवत् १२०० के करीब किराडू में होना पाया जाता है । भतः संवत् २२२ में इस जाति का अस्तिव्य भी सिद्ध नहीं होता।