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समकालीन शासक, विद्वान् एवं श्रावक १ महाराजा सवाई जयसिंह : (सन् १७०१ से १७४३)
महाराजा सवाई जयसिंह जयपुर राज्य के योग्यतम शासक थे । वीरता, शौय्यं एवं सूझ-बूझ, के लिए अपने समय में देहसी दरबार में अत्यधिक लोकप्रिय थे। वे सन् १७०१ में आमेर की गद्दी पर बैं, लेकिन जब उन्होंने आमेर को अपने राज्य के लिए बहुत छोटा नगर पाया तो सन् १७२७ में जयपुर नगर को बसाया' । इस नगर को महाराजा ने जिस वैज्ञानिक ढंग से बसाया उससे उनको कीति विश्व में फैल गयी। तत्कालीन जैन कवि बस्तराम साह ने अपने बुद्धिविलास में इसका निम्न प्रकार उल्लेख किया है
कूरम सवाई जयस्यंध भूप सिरोमनि, सुजस प्रताप जाको जगत में छायो है । करन-सौ दानी पांडवन-सौ रूपांनी महा,
मांनी मरजाद मेर राम-सी सुहायौ है ।। महाराजा सवाई जयसिंह ने एक लम्बे समय तक राज्य पर शासन किया अपने राज्य की सीमायों में अत्यधिक वृद्धि की।
शासकीय गुणों के अतिरिक्त महाराजा साहित्य, संस्कृति तथा कला के विशेष प्रेमी थे। विवानों एवं कलाकारों को वे खूब संरक्षण प्रदान करते थे। महाकवि दौलतराम का इनसे प्रथम साक्षात्कार कब हुमा---इसका तो कोई उल्लेख नहीं मिलता; लेकिन महाकवि ने सर्वप्रथम अपने 'पनक्रियाकोश' में (सं० १७९५) अपने पापको जयसिंह का अनुचर एवं जयसिंह के सुत (महाराज कुमार) का मंत्री के रूप में प्रस्तुत किया है। इसके पश्चात् जब तक महाराजा जीवित रहे तब सक महाकवि उनकी सेवा में रहे ।
सोहै अवावतिको दक्षिण दिसि सांगानेरि, दोळ वीचि सहर मनोपम वसायौ है। नाम ताको धरयौ है, सवाई जयपुर । मांनौं सुरनि ही मिलि सुरपुर-सौ रचायो है ।।८।।