Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 394
________________ २७८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व . लोकपूजित अनंत महिमाकू पावै । पर प्राहार दान के पुण्य कर महासुखी होय, ताकी सब सेवा करें । पर अभयदान कर निर्भय पद पावै, सर्व उपद्रवत रहित होय । अर ज्ञानदान कर केवलज्ञानी होम सर्वज्ञपद पाये ! अर औषधिदान के प्रभाव का रोगरहित निर्भयपद पाई। पर जो रात्रिकू पाहार का त्याग करे सो एक वर्ष विष छह महीना उपवास का फल पावै, यद्यपि गृहस्थगद के प्रारंभ विर्षे प्रवत है तो हूँ शुभ गति के सुस्त पावै । जो त्रिकाल जिनदेव की वंदना कर ताके भाव निर्मल होय, सर्व पापका माश करें । पर जो निर्मल भाव रूप बहुपनिकर जिननाथकू पूर्ज सो लोकविर्षे पूजनीक होय । पर जो भोगी पुरुष कमलादि जल के पुटप तथा केतकी मालती प्रादि पृथ्वी के सुगंध पुष्पनिकर भगवानकू परचै सो पुष्पक विमानकू पाय यथेष्ट क्रीड़ा करै । पर जो जिन राज पर अगर चंदनादि घूप खेवै सो सुगंध मारीर फा धारक होय । प्रा. जो गृहस्थी जिनमंदिर विर्षे विवेकसहित दीनोद्योत कर सो देवलोक विष प्रभाव सयुक्त शरीर पावै । पर जो जिनभवन विर्षे छत्र चमर झालरी पताका दर्पणादि मंगलद्रव्य चढ़ावै पर जिनमदिर... शोभित करें सो पाश्चर्यकारी विभूति पाद । मर जो जल-चंदनादितं जिनपूजा करें सो देवनिका स्वामी होय, महानिमल सुगंश्रमय शरीर जे देवांगना तिनका बल्लभ होय । पर जो नीरकर जिनेंद्र का अभिषेक कर सो देवनिकर मनुष्यनित सेवनीक चक्रवर्ती होय, जाका राज्यभिषेक देव विद्याधर करें । अर जो दुग्धकरि प्ररहत का अभिषेक कर सो क्षीरसागर के जलसमान उबल विमान विर्ष परम कांति धारक देव होय बहुरि मनुष्य होय मोक्ष पावै । पर जो दधिकर सर्वज्ञ बीतरागका अभिषेक कर सो दधि समान उज्जवल यशपायकर भवीदधिक् तरै । पर जो धृतकर जिननाथ का अभिषेक कर सो स्वर्ग विमान में महा बलवान देव होय परंपराय अनंत वीर्य कू धरं । अर जो ईख-रसकर जिमनाथ का अभिषेक करै सो अमृत का पाहारी सुरेश्वर होय नरेश्वर पद पाय मुनीश्वर होय पविनश्वर पद पावै । अभिषेक के प्रभाघवार अनेक भव्य जीय देव भर इन्द्रनिकरि अभिषेक पद पावते भए, तिनकी कथा पुराणनि में प्रसिद्ध है। जो भक्ति कर जिनमंदिर घिर्ष मयूरपिच्छादिककर बुहारी देय सो पापरूप रजतै रहित होम परम विभूति अर प्रारोग्यता पावै । पर जो गीत नृत्य वादिनादिकर जिनमंदिर विर्ष उत्सव कर सो स्वर्ग विर्ष परम उत्साहक्कू पावै पर जो जिनेश्वर के चैत्यालय करावं सो ताके पुष्प की महिमा कौन कह सके, सुर मंदिर के सुख भोग परंपराय अविनाशी बाम

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