Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 392
________________ २७६ महारवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व महाविनयवान उन विना कहा राज्य पर कहा सुख अर कहा देश की शोभा अर कहा तेरी धर्मज्ञता ? वे दोऊ कुमार पर वह सीता राजपुत्री सदा सुख के भोगनहारे पाषाणादिककार पूरित जे मार्ग ताविर्ष वाहन विना कैसे पायेंगे ? अर तिन मुण-समुद्रनिकी ये दोनों माता निरन्तर स्वन का है सो मरणकू' प्राप्त होयगी, तात तुम शीघ्रगामी तुरंग पर चल शितावी जावो, उनको ले प्रावो, तिन सहित महागुनसों चिरकाल राज करियो अर मैं भी तेरे पीछे ही उनके पास बाऊ हूं । यह माता की प्राज्ञा सुन बहुत प्रसन्न होय ताकी प्रशंमा कर अति यातुर भरत हजार अश्यसहित राम के निकट चला । पर जे रामके समीप वापिस र ते जनः गो नल, अ त तुरंग पर चढ़ा, उसावली चालसे वन वि पाया । वह नदी असराल बहती हुती सो तामें वृक्षनिके लठे गेर, बेड़े बांध क्षरणमात्र में सेना सहित पार उतरे, मार्ग विर्षे नर नारिनसों पूछते जाय जो तुम राम लक्ष्मण कहीं देखे ? वे पहै हैं, यहाँते निकट ही हैं । सी भरत एकात्तित्त चले गए। सघन वन में एक सरोवर के तट पर दोऊ भाई सीता सहित बैठे देखे, समीप हैं धनुष बाण जिनके । सीताके साथ ते दोक भाई घने दिवस विष पाए । पर भरत छह दिनमें आया । रामकू दूरते देख भरत तुरंगत उतर पाय पियादा जाय राम के पायनि पर मूच्छित होय गया तब राम सचेत किया । भरत हाथ जोड़ सिर नवाय रामसू वीनती करता भया । हे नाथ ! राज्य देयवेकर मेरी कहा विडम्बना करी । तुग सर्व न्याय. मार्गके जाननहारे, महा प्रवीण मेरे या राज्यकरि कहा प्रयोजन ? तुम बिना जोवेकर कहा प्रयोजन ? तुम महा उत्तम चेष्टाके धरणहारे मेरे प्राणनिके आधार हो । उठो, अपने नगर चल । हे प्रभो ! मो पर कृपा करहु, राज्य तुम करह, राज्य योग्य तुम ही हो, मोहि सुखकी अवस्था देह । मै तिहारे सिर पर चत्र फेरता खड़ा रहेगा और शत्रुघ्न चमर होगा पर लक्ष्मण मंत्रीपद धारेगा। मेरी माता पश्चातापरूप अग्निकर जरै है पर तिहारी माता अर लक्ष्मण की माता महाशोक कर है, यह बात भरत कर हैं ताही समय शीघ्न रथपर चढ़ी अनेक सामंतनिस हित महाशोककी भरी केकई माई पर राम लक्ष्मएकू उरसू लगाय बहुत रुक्ष्न करती भई । राम ने धयं बंधाया। तब केकई कहती भई-हे पुत्र ! उठो, अयोध्या चलो, राज्य करहु, तुम बिन मेरे सकल पुर वन के समान है । पर तुम महा बुद्धिमान हो, भरतकू सिखाय लेहु । बहुरि हम स्त्रीजन मष्ट बुद्धि हैं, मेरा अपराध क्षमा करहु । तब राम कहते भए. हे मात ! तुम बातगि बिर्ष प्रवीण हो, तुम काहा न

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