Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 391
________________ २७५ पद्म पुराण भाषा कुल्हाडतिर काटा गया । घर श्रनेक बार मनुष्यगतिविषं महासुगन्ध महावीर्य करणारा षटूरस संयुक्त अन्न बाहार किया। घर श्रनेक बार नरकविषे गला हुआ सीसा और तांबा नारकियोंने मार मार मुझे प्याया पर अनेक बार सुर नर गतिविर्षे मन हराहारे सुन्दर रूप देखे घर सुन्दर रूप धारे। पर प्रक बार नरक विषं महा हु करे प्रकार के देव राजपद देवपदविषं नाना प्रकारके सुगन्ध मूंदे तिनपर अमर गुजर करें 1 अर कैथक बार नरकको महा दुर्गंध सुधी श्रर अनेक बार मनुष्य तथा देवगतिfat महालीला की घरणहारी, वस्त्राभरण मंडित, मन की चोरनहारी जे नारी तिनसों आलिंगन किया । श्रर बहुत बार नरकविषं कूटशाल्मलि वृक्ष तिनके तीक्ष्ण कंटक र प्रज्वलित लोह की पुतलीनि से स्पर्श किया ? या संसार विषै कर्म निके संयोग में कहा कहा न सूत्रा, कहा कहा न सुना, कहा कहा न भखा । पर पृथिवीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय । काय विषै ऐसा देह नाहीं जो मैं न धरा । तीनलोकवि ऐसा जीव नाहीं जासू मेरे अनेक नाते न भए, ये पुत्र मेरे कई बार पिता भए, माता भए, शत्रु भए । ऐसा स्थान नाहीं, जहां मैं न उपजा न मूझ । 4 भोगादिक अनित्य, या जगतविर्ष कोई शरण नाहीं यह चतुर्गतिरूप संसार दुःखका निवास है, मैं सदा अकेला हूँ ये षद्रव्य परसर सब ही भिन्न हैं। यह काय अशुचि, मैं पवित्र ये मिथ्यात्वादि श्रतादि कर्म भाव के कारगा है, सम्यक्त व्रत संयमादि संबर के कारण हैं। तपकर निर्जरा होय है । मह लोक नानरूप मेरे स्वरूतै भिन्न, या जगत विषं श्रात्मज्ञान दुर्लभ है अर वस्तु का जो स्वभाव सोई धर्म तथा जीव धर्म सो मैं महाभाग्यत पाया । धन्य ये मुनि जिनके उपदेश मोक्षमार्ग पाया सो अब पुत्रतिकी कहा चिंता ? ऐसा विचार कर दशरथ मुनि निर्मोह दशाकू प्राप्त भए । जिन देशों में पहिले हाथी चढ़े, चमर करते, छत्र फिरते हते पर महारण संग्राम विषै उद्धत वैरिनिकु' जीते हेतु तिन देवनिवि निर्ग्रन्थ दशा धरे, बाईस परीषह जीतते, शांतिभाव संयुक्त विहार करते भए । अर कौशल्या तथा सुमित्रा पति के वैरागी भए पर पुत्रनिके विदेश गए महा शोकती भई निरंतर अनुपात हारे, तिनके दुःखकू देख भरत राज्य विभूति को विष समान मानता भया । पर केकई लिनकू दुःखी देख, उपजी है करुणा जाके, पुत्रको कहती भई कि हे पुत्र ! तू राज्य पाया, बड़े बड़े राजा सेवा करें हैं परन्तु राम लक्ष्मण विना यह राज्य शोभं नाहीं सो वे दोऊ भाई

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