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महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
अथ तीसवां पर्व ।
अथानंतर पृथ्वी का प्रभु पश्चिम दिशा के जीतिवेकू उद्यमी 'मया, नैऋत्य कोण के मागं अपनी सेना के साधन करि पृथ्वी कू वशि करता चाल्या ॥१॥ भागे मागे घोड़े जाप हैं तिनि के पीछे रथ चने पर मध्यविर्षे हायनिकी घटा चाली अर पयाड़े सर्वत्र चाले ॥२॥ या भांति चतुरंगबल देवनि के पर विद्याधरनिके कदक राहित पडंग पृथ्वी वि विस्त ग्घा ।। ३।। चालता कटक का क्षोभ ता थकी समुद्र चलायमान भया सो मानू सेवक जे मुभट तिनिकू स्वामी के पीछ चालना पहचावनें कू संग होना प्रगट दिखाये है ।।४।। कटक के लोकनि बलात्कारते भोगे बुनि के फल सो फल तोड़वं वृक्ष नय गए प्रर नदीनिका जल सुसि गया कीच होय गया पर बड़े बड़े पहाड़ थल होय गए ।।५।। यावे कार्य की सिद्धि सब सफल होतो भई अतिरसको भरी सुखकी करगाहारी सेवक जननिकरि नांदिवे योग्य महा उत्साह सहित अत्यंत फलती मई याकी मंत्र शक्ति उत्साहशक्ति प्रभुत्वशक्ति ।।६।।
पर सेना, पृथ्वीके जोतिबेकी है इच्छा जाकं सो देदीप्यमान होती भई कैसी है णक्ति पर सेना-कात भेदी न जाय, हेल है प्रबन्ध जिनिका नर शत्रु नि के क्षयका कारण ।।७।। थाके योद्धा बारण निसहित जीतिके भाव प्राप्त भए, कसे हैं बारा पर योद्धा बारण तो फल कहिए भाला तिनकार संयुक्त हैं अर योद्धा मनाछित फलकार युक्त हैं पर बाराहू तीक्ष्ण हैं अर योद्धाहू तीक्षा हैं अरु बारा तौ पक्ष कहिए पांख तिनिकरि सहित हैं पर योद्धा पक्ष कहिए सहायी तिनिकरि संयुक्त हे भर बाणह दूरगामी श्रर योद्धाहू दूरगामी ।।६।। अर याके विपक्षी कहिए शत्रु ते सत्याने विपक्ष कहिए पक्षरहित सहायरहित होते भए, सेना के लोकनि तितिकू' दूरि काढि दीए, ते सर्व सामग्रीसू रहित होय गाए ।।६।। एक बड़ा चिरज है याके विरोधी याके कोपळू होतसत भी कुपति कहिए कुमाणस होय गए सब सामग्रीरहित भए, अर दूजा अर्थ-व्यंम्वरूप-कुपतिनाम पृथ्वीपतिका है । पर याके विरोधी पहाडनिक उलंघि दूरि भागे अर दूजा अर्थ भूभृत् नाम राजानिका है अर याके विरोधी असे होय गए गो अन्न न मिल कनफल खाय प्राजीविका पूर्ण करते भए घर दुजा व्यंग्य अर्थ-पालसंपदा भोगवते भए ।।१०|| यार्क संधि कहिए मिलाप अर विग्रह कहिए युद्ध ताकी खर्चा शास्त्रविर्षे होती भई समस्त शत्रुको पक्षका निराकरण करणहारा ताके कौनसू संधि ? पर कोनसू पुद्ध ? याकं सब सेबक है कोऊ समान होय तो