Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 414
________________ २१८ महाकवि दौलतराम कासलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व न लेने जो पंडित जन विशेषग्य है ते ग्रेसा जांनहूं ।। जो इह प्रथवाल बुद्धिनिके समभिदे कू सुगम कीया है या परमात्मा प्रकाश की टीका का व्याख्यान जांनि करि भव्य जीवनिकू ऐसा विचार करना । जो मैं सहज सुद्ध ज्ञानानंद स्वभावि नीविकल्प हूं उदासीन हूं। निजानंद निरंजन सुद्धातम सम्यक् दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र रूप निश्चय रत्नत्रय मई निर्विकल्प समाधि कर उपज्या वीतराग सहजानन्दरूप श्रानंदानुभूति मात्रा जो सु संवेदन ज्ञान ताकरि गम्य है और उपायनि करि गम्य नाही || निविकल्प निजानंद ज्ञान ही करि प्राप्ति है, मेरी भारतावस्थ कहिए पूर्ण हूँ राग द्वेष मोह क्रोध मान माया लोभ पांच द्रीनिके विषय व्यापार मनकाय द्रव्य कर्म भावकर्म दो कर्म क्षाति पूजा लाभ देखे सुनें अनुभघु जेभोग तिनि की चोखा रूप निशन बंषभयः । मिथ्या शल्य त्रियादि विभाव परिणाम रहित सुन्यौ हूं कहिए सब प्रपंचनि त रहित हूँ ।। तीन लोक सोनकाल विषै मन वचन काय करि कृत कारिल अनुमोदना करि शुद्ध निश्चय नय की मैं समाराम ऐसा है तथा सर्व ही जीव ऐसे हैं इह निरंतर भावनां करनी ॥छ । यह परमात्म प्रकास ग्रंथ का व्याख्यान प्रभाकर भट्ट के संबोधने अभि श्री योद्रि देव ने किया ता परि श्री ब्रह्मदेव ने संस्कृत टीका करी | श्री योगाचार्य ने प्रभाकर भट्ट संवोधिवेक अधि दोहा तीन से तोयालीण कीए ता परि श्री ब्रह्मदेव ने संस्कृत टीका हजार पांच च्यारि ५००४ कीएता परि दौलत राम ने भाषा वचनिका का श्लोक प्राइसठि से निवे ६८९० संख्या प्रमाण की || श्री योगिंद्राचार्य कृत मूल दोहा ब्रह्मदेव कृत संस्कृत टीका का दौलतिराम कृत भाषा वचनिका पूर्ण भई । छ । । इति श्री योगिंद्राचार्य विरंचित परमात्मा प्रकास की भाषा वचनिका संपूर्ण ||छ || दोहा:--- कटि कूर्वाड कर बेगडी, नीचा मुख पर नंग | इस संकट पुस्तक लिखु, नीका राखो सैंगा || X X X X X

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