Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

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Page 417
________________ भादि पुराण संधिविग्रह संभवं ।। ११।। या भांति इह प्रजेतव्यपक्ष कहिए नांही रहया कोऊ प्रबल शत्रु जीतिबे योग्य जार्क मार्केटिंग सत्र दीन है तथापि वह दिग्विजय कू उद्यमी भया सो मानू अपना पालित्रेका भरत क्षेत्र ताकी दिग्विजयके मिसकरि प्रदक्षिणा देता भया ।। १२३१ ३०१ याकी सेना लोकनि समुद्र के तोरकों भूमि सत्र वशीभूत करी कैपी है सीर की भूमि सुपारी के वृक्षनिकरि करी है छाया जहां पर नालेरनिके चनकरि मंडित है ||१३|| साकी सेना के लोक सरोवरनिके तीर वृक्षनिकी छाया सहां विश्वास करसहारे तरुण नारेलनिका चया जो रस ताहि पीवते भए ॥१४॥ अर वाकी सेना के लोक ताल न सुनते भए सूखे पनि शब्द, पवन के इलायवेवरि प है ताडपत्र तिनिके पि महा कठोर ध्वनि होय रही है ।। १५ ।। घर दुइ नृपनिका पति तांबूलनि बेसिसत देखता भया खेर के वृक्ष, सो परस्पर मिलिरहे हैं मानू लोकनिकू ऐसी दिखाये हैं जो पातविका श्रर हमारा एक कार्य है जहां पान तहाँ काथ ||१६|| नृपनिका इन्द्र तांबूसनिकी वेलि लगिरहे र के वृक्ष तिमिकू देवता संता इनि वृक्षनिकरि वेढी तांबूलकी बेलि तिनिकू अवलोकिकरी हर्षित भया, मातु ए स्त्री-पुरुष के युगलभाव आचरे हैं ॥१७॥ श्रर वनविर्षे विहग जे पक्षी तिनिकू देखला संता हर्षित भैया मातृ ए पंखी मुनिसारिखे सोह हैं मुनिको यह रीति है जहाँ सूर्य अस्त होयवेका समय निकट प्रावे तहांही निवास करें रात्रीकू गमन न करें पर पंछीहू निष्ठाविषे गमन न करें पर पंत्री निरतंर शब्द करें है सो मातृ स्वाध्यायही करें हैं ॥१८॥ अर कटहल के वृक्ष मांही मृदु पर बाहरि जिनिकी त्वचा कांटेनिकरि युक्त तिनिके मिष्टरस अमृतसमान सेनाके लोक यथेष्ट भवते भए ।।१६।। नारेलनिका रस पीना पर कटहलका भोजन पर मिरचनिकी तरकारी, यहां चनका निवास सुखकारी है ॥२०॥ श्रर तीक्ष्णमकी भरी मिरच तिनका श्रास्वादकर पंखी शब्द करें हैं घर पर हैं प्रनिनि प्रभुशत जिनिके तिनि भूपेंद्र देखता भया ॥२॥ अर तरुण मर्केट महातीक्ष्ण मिरचनिकी मंजरी ताहि भखिकरि मशंकित भए सिर लाई है तिनिकू पृथ्वीका पति निरखता भया ||२२|| ता समें कटकके जन लोकके उपकारी जे बनके वृक्ष तिनिकू फलनिकरी नीभूत देखि कल्पवृदानिके अस्तित्वयि निःसंदेह भए, मनमैं विचारी - ए वृक्षही फलदाता हैं तो कल्पवृक्ष तो फलदाता होयही होय ॥२३३॥ लतारूप स्त्री ताकरि मडित पर फूलरूप प्रसूतिकरि संयुक्त अंसे बनके वृक्ष मातृ

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