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महाकवि दौलतगम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व
भाईयों को राज्याभिषेक और द्रोपदी का हरण फिर घातकी खंड में कृष्ण सहित पांडव जाय द्रौपदी माये ॥११॥ फिर नेमिनाथ के शरीर के बल का वर्णन ब नेमिनाथ के विवाह का हर्ष ||१२।। फिर जीवों को बन्ध से छुडावना और नेमिनाथ की दीक्षा, और केवलज्ञानका उपजना, देवों का प्रागमन समवसरण की विभूति का बर्णन, राजमती को प्राप्ति तप की । और पति श्रावक के धर्म का उपदेश और भगवान का तीर्थ विहार और देवकी के षट् पुत्रों का संयम ॥१४। फिर भगवान् का गिरनार मिरि विष प्रागमन और देवकी के प्रश्न का उत्तर और रुक्मणी सत्यभामा प्रादि पाठों पटराणियों के भवांतर का कथन ।।१५।। फिर राजकुमार का जन्म और उसकर दीक्षा ग्रहण प्रौर वसुदेव टार नव भाइयों का वैराग्य और त्रिषष्ठि शलाका के पुरुषों की उत्पत्ति का वनि और जिनराजा के अन्तराल का कयन और बलभद्र का प्रश्न । प्रद्युम्न की दीक्षा और रुक्मणी प्रादि कृष्ण की स्त्रियों का और पूत्रों का संगम और द्वीपायन मुनि के क्रोध से द्वारावती का नाश ॥१८॥ प्रौर बलभद्र नारायण का द्वारका से निकलना और कुटम्ब का भस्म होना और दोनों भाइयों का शोक सहित कौशांबी नगरी के धन बिषे प्रवेश ।।१६।। मोर बलभद्र का जल के अर्थ जाना और कृष्ण का अफेला रहना और बिना जाने जरद कुमार के हाथ से छूटा जो वारण उसकर देवयोग से हरि का परभव गमन करना ।।२०।। उसकर जरदकुमार को शोक उपजना और बलभद्र के प्रति टुस्तर दुःख का उपजना फिर सिद्धार्थ देव के उपदेश से बलभद्र को
राम्य उपजना तप धरना। प्रोर पांचवें स्वर्ग में जाना और पांडवों को वैराग्य होना और गिरनार विष नेमिनाथ का मुक्ति होना ॥२२॥ और पांचों पांडव महापुरुषों को उपसर्ग का जीतना, मोर जरदकुमार को दीक्षा लेना।
और जरदकुमार की सन्तान से हरिवंश का रहना और उनके वंश के दीपक जे राजा जितशत्रु उनको केवल ज्ञान की प्राप्ति और जो राजा श्रेणिक हरिवंश शिरोमरिण उनका राजगृह विषे राज ।।२४।। और वर्द्धमान भगवान का दीपमालिका के दिन निर्वाश गमन उससे देवों का वह दिन उत्सव रूप मानना । तब धीप्यमान दीपमालिका प्रसिद्ध भई और गणधरों का निर्वाण गमन यह हरिवंश पुराण का विभाग संक्षेप कर कहा है ।
प्रधानन्तर-भव्य जीव प्रसिद्धि के अर्धा विस्तार सहित व्याख्यान सुनें ।२६। एक ही पुरुष का चरित्र सुना हुमा पाप का नाश करे और जो सर्व तीर्जेश्वर चक्रवर हलधर उनका चरित्र भव्य जीव चे सुने उनका क्या पूछना, वह तो जन्म जन्म के पाप निवारे हैं जैसे महामेघ की बूद ही महा ताप का विच्छेद