Book Title: Mahakavi Daulatram Kasliwal Vyaktitva Evam Krutitva
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Sohanlal Sogani Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 406
________________ २६ महाकवि दौलतराम कासलीवाल-व्यक्तित्व एवं कृतित्व कर सब वृत्तान्त जाना ।।४।।। पूर्व भवका सब चरित्र प्रत्यक्ष जाना अर. देव इनका अभिषेक करण्वते भये पर इन्द्रपदकी विभूति दृष्टिगोचर करी ।।४।। पर वासुदेवसे अधिक है प्रेम जिनका सो जाय कर भाईसे मिले परस्पर अबलोकन कर दोऊके हर्ष उपज्या बासुदेव कही आपो दोऊ मनुष्य भव पाय वीतराग का धर्म प्राराध केवल प्रगट कर मोक्ष पायेंगे । अर. द्वारिकाके दाह कर पर यदुवंशके क्षय कर लोकापवाद भया सो तुम ऐसा करहु जो भरतक्षेत्र विषं मेरी मुत्ति शंख चक्र गदा पदमादि कर शोभित लोग पूजें यह बचन वासुक्षेवके उसमें धार बलदेव याही भांति करते भये देवनका किया कहा न होम ।। ४६।। ठोर ठौर पुर ग्रामादि विर्षे वासूदेवके मन्दिर कराय तिनकी सेवाकी विधि वताय बलदेव स्वर्ग विर्षे जाय जिनेश्वरकी सेवा करते भये ।।४७।। अनेक देन पर देवी तिन कर मंडित स्वर्गके अधिपति सुख भोगते भये । यह कथा गौतम स्वामीने राजा श्रेणिकसे कहीं फिर कहे हैं-हे थगिक ! यह स्नेही जगतके जीवनको जगत विषे भ्रमण करावे है स्नेहके योग कर जहां मित्र होय तहां जाय कर स्नेह की अधिकतासे आपको मुस्त्र प्राप्त भये हैं ते न भोगवे भर दुखका उद्यमी होय तात यह संसारका स्नेह ही मोशके सुखका विघ्न करनहारा है ।।४६ः। श्री नेमिनाथ जिनेंद्रका तीर्थ महा मोहका बिच्छेद करन हारा ता विर्षे नरदत्त नामा सुनि केवली भये हरियंश विर्षे करलकुमार राजा राजकी धुराके धोरी भये ।। ५०।। इति श्री अरिष्टनेमि पुराण संग्रहे हरिवंशे जिनसेनाचार्यस्य कृती भगवन्निवारणवर्णनो नाम पंचषष्टितमः सर्गः ।।६५।। अथानन्तर ...-राजा जरत्कुमार राज्य करे ताके राज्यमें प्रजा प्रानन्दको प्राप्त होती भई राजा महा प्रतापी जिनधी ताके राजको लोग अति चाहें ।।१।। सो जरत्कुमारने राजा कलिंगकी पुत्री परनीताके राजवंशकी ध्वजा समान वसृष्वज नामा पुत्र भया ।।२।। ताहि राजका भार सौंप जरत्कुमार मुनि भये सत पुरुषनके कुलकी यही रीति है पुत्र को राज देय आप चारित्र घारे ।।३॥ फिर वसुध्वजके सुवसु नामा पुत्र भया सो चन्द्रमा समान प्रजाको प्रिय राजा वस सारिखा प्रतापी होता भया ।।!अर वसुके भीम वर्मा भया फलिंग देशका पालक पर ताके वंशमें अनेक राजा भवे ।। ५। फिर ताही बंशमें हरिवंशका भाभूपण राजा कपिण्ट भया अर ताके अजातशत्र, भया ताके शत्र केन भया । पर ताके जितार नामा पुत्र भया ।१६|| साके जितशत्रु भया सो हे श्रेणिक ! ताहि तू कहा न जाने है जो राजा सिद्धार्थ महावीर स्वामीके पिताकी छोटी बहन परना महा प्रतापवान शत्रमंडलका जीतन हारा जगत

Loading...

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426