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परमात्म प्रकाश भाषा टीका
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परमात्म प्रकाश भाषा टीका
|| ॐ नमः: सिद्धेभ्यः ।। अथ "परमात्मा प्रकास" ग्रंथ "श्री योगिन्दाचार्य" कृत, ता परि संस्कृत टीका 'श्री ब्रह्मदेव' कृत ताकी भाषा वनिका रूप लिखिए है ।
दोहा चिदानंद चिद् प जो, जिन परमातम देव । सिद्ध रूप सुचि सुद्ध जो, नमो ताहि करि सेव ।।१।। परमात्म निज वस्तु जो, गुराण अनंत मय सुद्ध।
ताहि प्रकासन के निमित्त, बेदू देव प्रबुद्ध ।। २ ।। श्लोक-चिदानंदैकरूपाय, जिनाय परमात्मने ।
परमात्मप्रकाशाय, नित्यं सिद्धात्मने नमः ।।१।। अर्थः
थी जिनेश्वर देव शुद्ध परमात्मा ज्ञान प्रानन्द रूप चिदानंद बिद्रप तिनिक ताइ मेरा सदाकाल नमस्कार होह । केमे अथि नमस्कार होहू । परमात्मा का स्वरूप ताके प्रकासवे मथि । को हव भगवान सुद्ध परमात्मा स्वरूप के प्रकासक है । निज अर पर सबके स्वरूप प्रकामक है । बहुरि कैसे हैं सिद्धात्मने कहीये कृत कृत्य है, प्रात्मा जिनका । नमस्कार योग्य परमात्मा ही है । तात परमात्मा कू नमस्कार करि परमात्म प्रकास नामा मय का च्यास्यान करू हूँ ||१||
श्री योगिन्द्र देवकृत परमात्म प्रकास नाम दोहक छंद व ता बीर्ष प्रक्षेपक हीये उक्त च तिमि बिना व्याख्यान के अंथि अधिकारनिको परिपाटी कहीये है। प्रथमही पंच परमेष्टी के नमस्कार को मुख्यता करिजे है ।। २ ।।
जे जाया जमारागिए.--- इत्यादि सात दोहा जानने । बहुरि विजापना की मुख्यता फरि भावं पवि वि इत्यदि दोहातीन ||३||
वहरि बहिरात्मा मंतरात्मा परमात्मा निके भेद करि तीन प्रकार प्रात्मा के कथन की मुख्यता करि पुण पुणे परग विधि इत्यादि दोहा पांच ।। ५ ।।