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महाकवि दौलत राम कासलीवाल-व्यक्तिटव एवं कृतित्व
रहा तब लग दिया ।। ७॥ जैसे अग्नि का मुरा सुषण पर अर्ध जलन पर जल का गुण शीत पर पवन का गुण शीघ्र गमन और तिरछा गमन भर सूर्य का गुण प्रकाया पना पर प्राकाश का गुगण अमुतत्व पर पृथ्वी का गुण अनेक बस्तु का धारण अर सहनशीलपना तो कृतार्थ जे जिनेन्द्र तिनका गुण धर्मोपदेश है ॥ ६ ॥ जैसे शानावररणी दर्शनावरणी मोहनीय अंतराय यह चार घातिया कर्म क्षय किये हुते तसे योग का निरोध कर नाम गोत्र आयु मर वनीय इन चार माया काहू अन्त कर अनेक मुनिवरों सहित जिनवर सिद्ध लोक को सिधार ॥ १०॥ तब इन्द्र को मादि देय चतुनिकायनके देव निर्वाण कल्याणक की पूजा करते भये ॥ ११ ॥ जब भगवान मुक्त होय तब देहबंध रूप स्कंध परमारगु होय जाय प्रनादि कालकी यह रीति है जैसे बिजुरी विलाय तैसे जिनेश्वर का देह बिलाय गया पर मायामयी शरीर रच कर इन्द्रादिक दा क्रिया करते भये ।। १२ ।। अग्निकुमार भवनवासी देष तिनके इन्द्र के मुकुट ते प्रगट भई अग्नि ताकर जिनेन्द्र की देह का दाह भया ।। १३ ।। गंष पुष्पादि मनोहर द्रव्यन कर प्रभु की पूजा कर देव अपने अपने स्थान गये। इन्द्र वनकर गिरनार गिर विर्षे सिद्ध सिला उकीर गया । वरदत्तादि युनि को बंदना कर इन्द्रादिक पर नरेंद्रादिक अपने अपने स्थान गये ।। १५ । घर समुद्रविजयादि नव भाई पर देवकी के छ पुत्र पर प्रद्युम्न शंबु श्रीकृष्ण के पुत्र घर अनिरुद्ध प्रधुम्न का पुत्र यह गिरनार गिरते जगत के शिखर गये सो भव्य जीवन कर बंदनीक है गिरनार वड़ा तीर्थ है जहां अनेक भव्य जीव यात्रा को ग्रावे हैं ।। १७ ॥
अथानन्तर-पांडव महाधीर प्रभु का सिद्ध लोक गमन सुन कर शत्रुजय गिर विर्षे कायोत्सर्ग धर तिष्ठे ।। १८ ॥ तहा दुर्योधन के वंश का यवरोधन पापी प्राय कर बैर के जोग ते महा दुसह उपसर्ग करता भया ।। १६ ॥ लोहे के मुकुट अति प्रज्वलित इनके सिर पर धरे पर लोहे के कड़े मर कटि सूत्रादि लोहे के पामरण अग्नि मई इनको पहराये ॥ २०॥ तिन कर दाहका उपसगं प्रति रौद्र होता भया परन्तु वे महावीर मुनि धीर कर्म के विपाक के जानन होरे कर्म के क्षय करने को समर्थ दाह का उपसर्ग हिम हिम समान शीतल मानते भये ।। २१ ।। तिनमें युधिष्टर भीम अर्जुन यह तीनों साधु क्षपक श्रेणी विर्षे पारूढ़ होय शुक्ल ध्यान कर अष्टम भूमि जो निर्वाण ताकों पधारे अन्त कृत फेवली अविनाशी भये ।। २२ ।। पर नकुल सहदेव ने उपशम श्रेणी मांडी हुती सो ग्यारहवां गुणठारण से फिर गिर घोष मुणठाणे प्राय देह तज सर्वार्थसिद्धि पधारे। तहाते चय मनुम होय जगत् के